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________________ जैनतत्त्वमीमांसा है। तथा ग्रन्थराजका हिन्दी भाषामें भाषान्तर सम्पादन किया है। अलभ्य दर्शनशास्त्रके योग्य माने जानेवाले ग्रन्थोंको और उनकी महान् विस्तृत गम्भीर संस्कृत-प्राकृत टीकाओंको हिन्दी भाषामें सुगम सुबोध शैली में प्रतिपादन करना सरल कार्य नहीं है। इस समय भी इनके द्वारा कसायपाहुड (जयधवला) और मूलाचारके भाषन्तरका कार्य हो रहा है। ऐसे अनुभवी ज्ञानी विद्वान्की लेखनीसे लिखा जाकर प्रस्तुत ग्रन्थ जनता के सामने आ रहा है। ___प्रस्तुत ग्रन्थमें १२ अधिकार है। उनके नाम ये है-१ विषयप्रवेश, २ वस्तुस्वभावमीमांसा ३ निमित्तको स्वीकृति, ४ उपादान-निमित्तकरणमोमांसा, ५ कर्तकर्ममीमांसा, ६ षटकारकमीमांसा, ७ क्रमनियमितपर्यायमीमांसा, ८ सम्यक् नियतिस्वरूपमीमांसा, ९ निश्चय-व्यवहारमोमांसा, १० अनेकान्त-स्याद्वादमीमांसा, ११ सर्वज्ञस्वभावमीमांसा और १२ उपादान-निमित्तसंवाद | प्रत्येक अध्याय में वर्णित विषय अपने में पूर्ण है। विषय प्रतिपादन अनेक उच्चकोटिके आगम, दर्शन, न्याय आदि ग्रन्थोके प्रमाण देकर किया गया है । अनेक महान् ग्रन्थोके जो प्रमाण प्रस्तुत किए गए हैं और उनके आधारसे जो तत्त्व फलित किये गये है वे मेरी श्रद्धानुसार वर्तमान मे तत्त्वजिज्ञासुओंके बहुतसे उलझे हुए विचारोंके सुलझानेमे मार्गदर्शन करते हैं। साथ ही अनेक धर्मग्रन्थोमें कहाँ किस दृष्टिकोणसे तत्त्वका प्रतिपादन किया गया है इसे समझनेमे सहायता करते है। इस दृष्टिसे इस ग्रन्थको रचना बहुत ही उपयोगी हुई है। ____ इस वर्ष बीना इटावा ( सागर ) की जैन समाजके आमन्त्रण पर विद्वत्परिषदने श्रुतपञ्चमीके पुण्य अवसर पर विद्वद्गोष्ठी (ज्ञानगोष्ठो) का आयोजन किया था। उसमें एक सप्ताह तक इस पुस्तकका सांगोपांग वाचन हुआ, जिसमे सब विषयोंके जानकार प्रौढ विद्वानों व त्यागियोंने भाग लिया था। चरचा होते समय अनेक नगरोंके अन्य गण्मान्य सज्जन भी उपस्थित रहते थे। प्रसन्नता है कि गोष्ठीके समय दर्शन और न्याय शैलीसे विविध दृष्टिकोण एक दूसरेके सामने आये। उन्हे विद्वानोंने समीपसे समझा और उनका परस्परमें आदान-प्रदान किया। परस्पर वात्सल्यको भावनाको बढ़ाते हुए वीतराग कथाके रूपमें जिस स्नेह और श्रद्धापूर्ण वातावरणमें यह गोष्ठी हुई उसका बड़ा मूल्य है। परस्पर तत्त्वचरचाका वीतराग प्रतिपादित मार्ग क्या हो सकता है यह उसका
SR No.010314
Book TitleJain Tattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherAshok Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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