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________________ उमयनिमित्त-मीमांसा तथ्यको लिए हुए हैं कि प्रत्येक कार्य चाहे वह शुद्ध द्रव्य सम्बन्धी हो और चाहे अशुद्ध द्रव्यसम्बन्धी हो, अपने-अपने निश्चय उपादानके अनुसार ही होता है। उसके अनुसार होता है इसका यह अर्थ नहीं है कि वहाँ परद्रव्य निमित्त नहीं होता । परद्रव्य निमित्त तो वहाँपर भी होता है । पर उसके रहते हुए भी कार्य निश्चय उपादानके अनुसार ही होता है यह एकान्त सत्य है । इसमें सन्देहके लिए स्थान नहीं है। यही कारण है कि मोक्षके इच्छुक पुरुषोंको अनादि रूढ़ लोकव्यवहारसे मुक्त होकर अपने द्रव्यस्वभावको लक्ष्यमें लेना चाहिए आगममें ऐसा उपदेश दिया गया है। ___ यहाँ यह शंका की जाती है कि यदि कार्योकी उत्पत्ति अन्य निमित्तोंके अनुसार नहीं होती है तो उन्हें निमित्त ही क्यों कहा जाता है ? समाधान यह है कि ये कार्योंको अपने अनुसार उत्पन्न करते हैं, इसलिए उन्हे विस्रसा या प्रयोग कारण नहीं कहा गया है। किन्तु अज्ञानीके विकल्प और क्रियाकी प्रकृष्टता अन्य द्रव्योंके क्रियाव्यापारके समय उनको सूचन करनेमें निमित्त होती है इस बातको ध्यानमें रखकर ही उन्हें प्रयोग निमित्त कहा गया है। विनसा निमित्तोंके विषयमें विवाद ही नही है। इस प्रकार प्रत्येक कार्य यथा सम्भव उक्त पाँच हेतुओंके समवायमें होता है। उनमें ही निश्चय उपादान और व्यवहार निमित्तोंका अन्तर्भाव हो जाता है । इसलिये आगममे सर्वत्र उक्त दो हेतुओका निर्देश कहीं पर दोनोंको मुख्यतासे और कहीं पर गौण-मुख्यरूपमें दृष्टिगोचर होता है . यह इस अध्यायके कथनका सार है। wati
SR No.010314
Book TitleJain Tattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherAshok Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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