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________________ १२४ जैनतस्व-मीमांसा प्रकृतमें शालि-बीजमें ही शालि-अंकुरके उत्पन्न करनेकी योग्यता होने पर भी कौन शालि बीज किस समय अपने अंकुरको जन्म दे इसका नियम है। भले हो निश्चय उपादान और उसके अंकुरमें समय भेद हो पर शालि-बीजके उस भूमिकामें पहुंचने पर उससे नियमसे अंकुरकी उत्पत्ति होगी ही ऐसा प्रतिनियम है। यहाँ मिट्टी आदिका अन्वय-व्यतिरेकके आधार पर कालप्रत्यासत्ति होनेसे सद्भाव रहेगा ही इसमें सन्देह नहीं पर मिट्टी आदि व्यवहारसे निमित्तमात्र ही हैं, वे परमार्थसे अंकुरके उत्पन्न करनेकी क्षमता नहीं रखते यह भी सुनिश्चित है। इसी तथ्यका स्पष्टीकरण तत्त्वार्थवातिकमें इन शब्दोंमें किया है यथा मृद. स्वयमन्तर्घटभवनपरिणामाभिमुख्ये दण्ड-चक्र-पौरुषेयप्रयत्नादि निमित्तमात्रं भवति । जैसे मिट्टीके स्वयं भीतरसे घटपरिणामके अभिमुख होने पर दण्ड, चक्र और पुरुष प्रयत्न आदि निमित्तमात्र होते है। ___ इस उल्लेखसे हम जानते हैं कि विवक्षित कार्यको जन्म देनेकी शक्ति निश्चय उपादानमे ही होती है, अन्य बाह्य पदार्थ असद्भुत व्यवहारसे ही निमित्तमात्र होते हैं। उनमें निश्चय उपादानके कार्यको जन्म देनेकी योग्यता या भवितव्य तो नही ही होती, पर उनमें व्यवहारहेतुता वश ऐसा व्यवहार कर लिया जाता है। इस प्रकार इतने विवेचन से यह सिद्ध होता है कि व्यवहार-निश्चयका योग सुनिश्चितरूपसे होता रहता है । इनमें अनियम मानना एकान्त है। . __शंका-निश्चय सम्यग्दर्शनके विषयमे कुछ लोग कहते है कि सातवे गुणस्थानसे होता है। कुछ ग्यारहवें गुणस्थानसे मानते हैं और कुछ तेरहवें गुणस्थानसे भी मानते हैं। पर आप तो चौथे गुणस्थानसे ही उसे स्वीकार करते हैं सो इस विषयमे आगम क्या है ? ___ समाधान-(१) सर्व प्रथम हम श्री परमागम समयसार शास्त्रको ही लेते हैं । शुद्धनयकी व्याख्या करते हुए वहाँ कहा है जो पस्सदि अप्पाणं अबढ-पुट्ठ आणण्णय णियदं । अविसेसमसंजुत्तं तं सुद्धणय वियाणीहि ।।१४॥ जो आत्माको अबद्ध अस्पृष्ट अनन्य, नियत्त, अविशेष और असंयुक्त अनुभवता है उस आत्माको शुद्धनय जानो ॥१४॥ आत्माख्याति टीकामें इसकी व्याख्या करते हुए लिखा है
SR No.010314
Book TitleJain Tattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherAshok Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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