SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निश्चयउपादान-मीमांसा नियमसे अव्यवहित पूर्व पर्याय युक्त द्रव्य कारणरूप है और अव्यवहित उत्तर पर्याययुक्त द्रव्य कार्यरूप है ॥२२२॥ प्रत्येक कार्यका निश्चय उपादान एक ही है इस प्रकार परमागमसे निश्चय उपादानका लक्षण सुनिश्चित होनेपर जो महाशय इन्द्रियप्रत्यक्ष, तर्क और अनुभवके आधार पर जौरशोरसे यह कहते हुए नहीं थकते कि अव्यवहित पूर्व समयवर्ती द्रव्य उपादान होते हुए भी उससे अव्यहित उत्तरकालमें कोन कार्य होगा यह निश्चित नहीं किया जा सकता, क्योंकि वह अनेक योग्यताओंवाला होता है, इसलिए जब जैसा निमित्त मिलता है तब उसी प्रकारका कार्य होता है, अतएव कार्यका नियामक निश्चय उपादान न होकर बाह्य निमित्तको ही मानना चाहिए। किन्तु उनका यह कथन कैसे आगम विरुद्ध है इसे स्पष्ट रूपसे समझनेके लिए आचार्य विद्यानन्दके त० श्लोकवा० पृ० ६५ के इस कथन पर भी दृष्टिपात कीजिये तेनायोगिजिनस्यान्त्यक्षणवति प्रकीर्तितम् । रत्नत्रयमशेषाधविधातकारण ध्रुवम् ॥४७॥ ततो नाऽन्योऽस्ति मोक्षस्य साक्षान्मार्गो विशेषतः । पूर्वावधारण येन न व्यवस्थामियति नः ॥४८॥ इसलिए अयोगी जिनका अन्त्यक्षणवर्ती रत्नत्रय नियमसे समस्त अघाति कर्मोका क्षय करनेवाला कहा गया है ॥४७॥ इसलिए परमार्थसे मोक्षका अन्य कोई साक्षात् मार्ग नही है, अतः हमने रत्नत्रय ही मोक्षमार्ग है इस प्रकार जो पूर्वावधारण किया है वह अव्यवस्थित न होकर व्यवस्थित ही है ॥४८॥ इसी तथ्यको और भी स्पष्ट करते हुए वे इसी परमागमके पृ०६४ पर क्या करते हैं इसपर भी दृष्टिपात कीजीए निश्चयनयातूभयावधारणमपीष्टमेव, अनन्तरसमयनिर्वाणजननसमर्थानामेव सद्दर्शनादीनां मोक्षमार्गत्वोपपत्ते । निश्चयनयसे तो दोनों ओरसे अवधारण करना भी हमें इष्ट है, क्योंकि अव्यवहित उत्तर समय में निर्वाणको पैदा करने में समर्थ सम्यग्दर्शनादिकके ही मोक्षमार्गपना बनता है। यहाँ पर निश्चयनयकी अपेक्षा सम्यग्दर्शनादि ही मोक्षमार्ग है या सम्यग्दर्शनादि मोक्षमार्ग ही है इस प्रकार अवधारण करके उस एकान्त को स्वीकार किया गया है जिसे आज कल कुछ लोग सर्वथा एकान्त कह कर उसका निषेध करते हैं।
SR No.010314
Book TitleJain Tattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherAshok Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy