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________________ संक्षिप्त अनुमान - विवेचन : ४७ किये हैं । धर्मकीर्तिने' उक्त तीन अवयवोंमेंसे पक्षको निकाल दिया है और हेतु तथा दृष्टान्त ये दो अवयव माने हैं । न्यायबिन्दु और प्रमाणवार्तिक में उन्होंने केवल हेतुको ही अनुमानावयव माना है । २ मीमांसक विद्वान् शालिकानाथने प्रकरणपंचिकामें, नारायण भट्टने मानमेयोदय में और पार्थसारथिने न्यायरत्नाकर में प्रतिज्ञा, हेतु और दृष्टान्त इन तीन अवयवोंके प्रयोगको प्रतिपादित किया है । जैन तार्किक समन्तभद्रका संकेत तत्त्वार्थ सूत्रकार के अभिप्रायानुसार पक्ष, हेतु और दृष्टान्त इन तीन अवयवोंको माननेकी ओर प्रतीत होता है । उन्होंने आप्तमीमांसा (का० ६, १७, १८, २७ आदि ) में उक्त तीन अवयवोंसे साध्य-सिद्धि प्रस्तुत की है । सिद्धसेनने भी उक्त तीन अवयवोंका प्रतिपादन किया है । पर अकलंक और उनके अनुवर्ती विद्यानन्द, माणिक्यनन्दि, देवसूरि, हेमचन्द्र ", धर्म भूषण, यशोविजय १३ आदिने पक्ष और हेतु ये दो हो अवयव स्वीकार किये हैं और दृष्टान्तादि अन्य अवयवोंका निरास किया है । देवसूरिने " अत्यन्त व्युत्पन्नकी अपेक्षा मात्र हेतु के प्रयोगको भी मान्य किया है । पर साथ ही वे यह भी बतलाते हैं कि बहुलतासे एकमात्र हेतुका प्रयोग न होनेसे उसे सूत्र में ग्रथित नहीं किया । स्मरण रहे कि जैन न्यायमें उक्त दो अवयवोंका प्रयोग व्युत्पन्न प्रतिपाद्य की दृष्टिसे अभिहित है । किन्तु अव्युत्पन्न प्रतिपाद्योंकी अपेक्षासे तो दृष्टान्तादि अन्य अवयवों का भी प्रयोग स्वीकृत है । १५ देवसूरि १६, हेमचन्द्र १७ और यशोविजयने " १. वादन्या० पृ० ६१ । प्रमाणत्रा० १।१२८ । न्यायबि० पृष्ठ ९१ । २. प्रमाणत्रा ११२८ । न्यायवि० पृष्ठ ६१ । ३. प्र० पं० पृ० २२० । ४. मा० मे० पृ० ६४ । ५. न्यायरत्ना० पृष्ठ ३६१ (मी० श्लोक अनु० परि० श्लोक ५३) । ६. न्यायाव० १३-१६ । ७ न्या० वि० का० ३८१ । ८. पत्रपरो० पृ० ६ ६. परीक्षामु० ३३७ । १०. प्र० न० त० ३।२८, २३ । ११. प्र० मी० २।१।९ । १२. न्याय० दी० पृष्ठ ७६ । १३. जैनत. १० पृ० १६ । १४. प्र० न० त० ३।२३, पृ० ५४८ । १५. परो० मु० ३ | ४६| प्र० न० त० ३।४२ । प्र० मो० २।१।१०। १६. प्र० न० त० ३।४२, पृ० ५६५ । १७. प्र० मी० २।१।१०, पृष्ठ ५२ । १८. जैनत० भा० पृष्ठ १६ ।
SR No.010313
Book TitleJain Tark Shastra me Anuman Vichar Aetihasik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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