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________________ ४२ : जैन तर्कशास्त्र में अनुमान- विचार गिनाया है । उनके परिगणित प्रकार निम्न हैं- ( १ ) कार्य, (२) कारण, ( ३ ) संयोगो, ( ४ ) विरोधि और ( ५ ) समवायि । यतः हेतुके पाँच भेद हैं, अतः उनसे उत्पन्न अनुमान भी पांच हैं । न्यायसूत्र', उपायहृदय े, चरक ३' सांख्यकारिका और अनुयोगद्वारसूत्रमें " अनुमान के पूर्वोल्लिखित पूर्ववत् आदि तीन भेद बताये हैं । विशेष यह कि चरकमें त्रित्वसंख्याका उल्लेख है, उनके नाम नहीं दिये । सांख्यकारिका में भी त्रिविधत्वका निर्देश है और केवल तीसरे सामान्यतोदृष्टका नाम है । किन्तु माठर" तथा युक्तिदीपिकाकार" ने तीनोंके नाम दिये हैं और वे उपर्युक्त ही हैं । अनुयोगद्वारमें प्रथम दो भेद तो वही हैं, पर तीसरेका नाम सामान्यतोदृष्ट न होकर दृष्टसाधर्म्यवत् नाम हैं । इस विवेचनसे ज्ञात होता है कि तार्किकोंने उस प्राचीन कालमें कणादकी पंचविध अनुमान -परम्पराको नहीं अपनाया, किन्तु पूर्ववदादि त्रिविध अनुमान की परम्पराको स्वीकार किया है। इस परम्पराका मूल क्या है ? न्यायसूत्र है या अनुयोगसूत्र आदि से कोई एक ? इस सम्बन्ध में निर्णयपूर्वक कहना कठिन है । पर इतना अवश्य कहा जा सकता है कि उस समय पूर्वागत त्रिविध अनुमानकी कोई सामान्य परम्परा रही है जो अनुमान चर्चा में वर्तमान थी और जिसके स्वीकार में किसीको सम्भवतः विवाद नहीं था । पर उत्तरकालमें यह त्रिविध अनुमान परम्परा भी सर्वमान्य नहीं रह सकी । प्रशस्तपादने दो तरहसे अनुमान-भेद बतलाये हैं - १ दृष्ट और २ सामान्यतोदृष्ट | अथवा १. स्वनिश्चितार्थानुमान और २ परार्थानुमान । मीमांसादर्शन में शबरने " प्रशस्तपादके प्रथमोक्त अनुमान द्वैविध्यको ही कुछ परिवर्तनके साथ स्वीकार किया है - १ प्रत्यक्ष तोदृष्टसम्बन्ध और २ सामान्यतोदृष्टसम्बन्ध | १. न्ययायसू० १।१।५ । २. उपायहृ० पृ० १३ । ३. चरकसूत्रस्थान ११।२१, २२ । ४. सां० का० का० ५ । ५. मुनि कन्हैयालाल, अनुयो० सू० पृ० ५३६ ६. सां० का० का० ६ । ७. माठरवृ० का० ५ । ८. युक्तिदी० का० ५, पृष्ठ ४३, ४४ । ९. प्रश० भा० पृ० १०४, १०६, ११३ । १०. शाबरभा० १।१/५, पृष्ठ ३६ ॥
SR No.010313
Book TitleJain Tark Shastra me Anuman Vichar Aetihasik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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