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________________ अनुमानामास-विमर्श : २४॥ व्युत्पन्न और अव्युत्पन्न प्रतिपाद्योंकी अपेक्षा दो प्रकारका है। अव्युत्पन्न प्रतिपाद्योंके प्रयोगको ही बाल-प्रयोग और उसके आभास ( असत प्रयोग को बालप्रयोगाभास कहा गया है । प्रकृतमें देखना है कि माणिक्यनन्दिने बालप्रयोगाभासका क्या स्वरूप बतलाया है ? बालप्रयोगके विवेचनके समय यह ज्ञात कर चुके हैं कि विभिन्न मन्दमति प्रतिपाद्योंके लिए जैन ताकिकोंने उतने अवयवोंका प्रयोग आवश्यक माना है जितनोंसे उन्हें प्रकृतार्थप्रतिपत्ति हो जाए। किसी मन्दमतिके लिए पक्ष, हेतु और दृष्टान्त इन तीन अवयवोंकी आवश्यकता होती है, किसीके लिए उपनयसहित चारोंको और किसी अन्यके लिए निगमनसहित पांचोंको। अतएव यथायोग्य प्रयोग बालप्रयोग और उससे अन्यथा ... न्यून अथवा विपरोत प्रयोग बालप्रयोगाभास है। और इस प्रकार बालप्रयोगाभास चार प्रकारका सम्भव है-( १ ) द्वि-अवयवप्रयोगाभास, (२) त्रि-अवयवप्रयोगाभास, ( ३ ) चतुरवयवप्रयोगाभास और ( ४ ) विपरीतावयवप्रयोगाभास । (१) द्वि-अवयवयोगाभास किसी मन्दमति प्रतिपाद्य के लिए पक्ष, हेतु और दृष्टान्त इन तीनका प्रयोग आवश्यक है, किन्तु उसके लिए केवल पक्ष और हेतु दोका ही प्रयोग करना द्वि-अवयवप्रयोगाभास नामका बालप्रयोगाभास है। (२) त्रि-अवयवप्रयोगाभास-चार प्रयोगोंसे समझने वाले प्रतिपाद्यके लिए तीनका ही प्रयोग करना त्रि-अवयवप्रयांगाभास है। ( ३ ) चतुरवयवप्रयोगाभास-पांच अवयवप्रयोगोंसे साध्यार्थका ज्ञान करनेवाले बालके लिए चार अवयवका ही प्रयोग करना चतुरवयवबालप्रयोगाभास है। जैसे-'यह प्रदेश अग्निवाला है, क्योंकि घूमवाला है, जो धूमवाला होता है वह अग्निवाला होता है, यथा महानस, और धूमवाला यह है' इन चारका ही प्रयोग करना, निग मनका नहीं। (४) विपरीतावयवप्रयोगाभास-क्रमबद्ध अवयवोंका प्रयोग न कर विपरीत प्रयोग करना विपरीतावयवप्रयोगगाभास है। जैसे उपनय न कहकर १. बालप्रयोगाभासः पंचावयवेषु कियद्धीनता। -परी० मु० ६।४६ । २. अग्निमानयं देशो धूमवत्वात् , यदित्यं तदित्थं यथा महानसः, धूमवांश्चार्यामति वा । -वहो, ६१४७-४८ । ३. तस्मादग्निमान् धूमवांश्चायम् । -परीक्षामु०६४९ ।
SR No.010313
Book TitleJain Tark Shastra me Anuman Vichar Aetihasik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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