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________________ १३८ :ब सवालमें गबुमान-विचार पपत्ति या अन्यथानुपपनत्वका अभाव तीन तरहसे होता है। या तो उसकी प्रतीति न हो, या उसमें सन्देह हो और या उसका विपर्यास हो । प्रतीति न होने पर हेतु असिद्ध, सन्देह होनेपर अनैकान्तिक और विपर्यास होनेपर विरुद्ध कहा जाता है। अतएव तीन हेत्वाभासोंका प्रतिपादन भी जैन परम्परामें सम्भव है । सिद्धसेनने' दृष्टान्तदोषोंको प्रथमतः दो वर्गोंमें विभक्त किया है-(१) साधर्म्यदृष्टान्तदोष और (२) वैधर्म्य दृष्टान्तदोष । तथा इन दोनोंको उन्होंने छह-छह प्रकारका बतलाया है । इनमें साध्यविकल, साधनविकल और उभयविकल पे तीन साधाय॑दृष्टान्तदोष तथा साध्याव्यावृत्त, साधनाग्यावृत्त और उभयाव्यावृत्त ये तोन वैवयं दृष्टान्तदोष न्यायप्रवेश जैसे हैं । परन्तु सन्दिग्धसाध्य, सन्दिग्धसाधन और सन्दिग्धोभय ये तीन साधर्म्य दृष्टान्तदोष तथा सन्दिग्धसाध्यव्यावृत्ति, सन्दिग्धसापमव्यावृत्ति और सन्दिग्धोभयव्यावृत्ति ये तोन वैधयं दृष्टान्तदोष धर्मकोतिकी तरह कथित है। न्यायप्रवेशगत अनन्वय और विपरीतान्वय ये दो साधर्म्यदृष्टान्ताभास तथा अव्यतिरेक और विपरीतव्यतिरेक ये दो वैधर्म्य दृष्टान्ताभास एवं धर्मकोति स्वीकृत अप्रदर्शितान्वय और अप्रदर्शितव्यतिरेक ये दो साधर्म्य-वधर्म्य दृष्टान्ताभास सिद्धसेनको मान्य नहीं हैं। इस सन्दर्भ में सिद्धर्षिगणीको अतिरिक्त दृष्टान्ताभाससमीक्षा दृष्टव्य है । सिद्धसेनने इन दृष्टान्तदोषोंको यद्यपि 'न्यायविदीरीताः' शब्दों द्वारा न्यायवेत्ता-प्रतिपादित कहा है फिर भी उनका अपना भी चिन्तन है। यही कारण है कि उन्होंने न तोन्यायप्रवेशकी तरह पांच-पांच और न धर्मकोतिको तरह नौ-नो साधर्म्य-वैषHदृष्टान्ताभास स्वीकार किये । हाँ, अपने अङ्गीकृत उक्त छह-छह दृष्टान्ताभासोंके चयनमें उन्होंने इन दोनोंसे मदद अवश्य ली है और उसको सूचना 'स्यामविदीरिताः' कह कर की है। अकलङ्कीय अनुमानदोषनिरूपण : जैन न्यायमें अकलङ्क ऐसे सूक्ष्म एवं प्रतिभाशाली चिन्तक हैं, जिन्होंने अनुमाना. भासोंकी मान्यतामें नया चिन्तन प्रस्तुत किया है । अकलङ्कके पूर्व जैन दार्शनिक १. सापयेणात्र दृष्टान्तदाषा न्यायविदोरिताः । अपलक्षणहेतूत्याः साध्यादिविकलादयः ।। वैधयेणात्र दृष्टान्तदोषा न्यायविदीरिताः । साध्यसाधनयुग्मानामनिवृत्तेश्च संशयात् ॥ न्यायाव. का० २४, २५ । २. न्यायप्र० पृ०५-७। ३. न्यायवि० पृ० ९४-१०१। ४. न्यायाव० टी० का० २४, पृ. ५७ ।
SR No.010313
Book TitleJain Tark Shastra me Anuman Vichar Aetihasik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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