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________________ अनुमानामास-विमर्श : २२० भास स्वीक्रत हैं। साध्य-सिद्धि में दृष्टान्तको भी अंग कहनेसे उसका दोष (दृष्टान्ताभास ) भी उन्हें अभिप्रेत हो तो आश्चर्य नहीं । असिद्ध, विरुद्ध , व्यभिचार जैसे हेत्वाभासोंका तो उन्होंने स्पष्ट उल्लेख किया है। सिद्धसेननिरूपित अनुमानाभास : सिद्धसेनको हम अनुमानाभासका स्पष्टतया विवेचक पाते हैं । यतः उन्होंने परार्थानुमानके पक्ष, हेतु और दृष्टान्त ये तीन अवयव स्वीकार किये हैं अतः उसके दोष भी उन्होंने तीन प्रकारके वर्णित किये हैं। वे ये है-(१) पक्षाभास, (२) हेत्वाभास और ( ३) दृष्टान्ताभास । पक्षाभासके सिद्ध और बाधित ये दो भेद करके बाधितके सिद्धसेनने अनेक अर्थात् चार भेद बतलाये हैं-(१) प्रत्यक्षबाधित, (२) लिङ्गबाधित, (३) लोकबाधित और (४) स्ववचनबाधित। हेत्वाभास उन्होंने तीन प्रकारके प्रतिपादित किये हैं-(१) असिद्ध, (२) विरुद्ध और ( ३ ) अनैकान्तिक । वैशेषिक और बौद्ध भी यही तीन हेत्वाभास मा. नते हैं और विध्यका उपपादन वे यों करते हैं कि यतः हेतु त्रिरूप है, अतः एकएक रूपके अभावमें उक्त तीन हो हेत्वाभास सम्भव है। यहाँ प्रश्न हो सकता है कि हेतुका रूप्य लक्षण माननेके कारण उनके अभावमें वैशेषिक और बौद्धोंका त्रिविध हेत्वाभास प्रतिपादन युक्त है । पर जैन ताकिकोंने एकमात्र अन्यथानुपपत्तिको ही हेतुलक्षण स्वीकार किया है। स्वयं सिद्धसेनने भन्यथानुपपनत्वं हतोलक्षणारितम्' शब्दों द्वारा अन्यथानुफ्पन्नत्वको ही हेतुका लक्षण बतलाया है। अतः उनके अनुसार हेत्वाभास एक होना चाहिए, तीन नहीं ? इसका उत्तर स्वयं सिद्धसेनने युक्तिपुरस्सर यह दिया है कि चूंकि अन्यथानु १. दृष्टान्तसिद्धावुभयोर्विवाद साध्यं प्रसिद्धयन्न तु तादृस्ति । नयः स दृष्टान्तसमर्थनस्ते। -स्वयम्भू० का ५५ तथा ५३ । २. युक्त्य० का० १२, १८, २९ । ३. न्यायाव० का० २१, २२, २३, २४, २५ । ४. प्रतिपाद्यस्य यः सिद्धः पक्षाभासोऽक्ष-लिङ्गतः । लोक-स्ववचनाम्यां च बाधितोऽनेकपा मतः॥ -वही, का० २१ । ५, ६. अन्यथानुपपन्नत्वं हेतोलक्षणमोरितम् । तदप्रतीति-सन्देह-विपर्यासैस्तदाभता ॥ असिद्धस्त्वप्रतीतो यो योऽन्यथैवोपपद्यते । विरुद्धो योऽन्यथाप्यत्र युक्तोऽनेकान्तिकः स तु ॥ -वही, का० २२, २३ ।
SR No.010313
Book TitleJain Tark Shastra me Anuman Vichar Aetihasik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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