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________________ हेतु-विमर्श : २०. व्याख्याकार वीरसेनने अवश्य हेतुवाद' पदकी व्याख्या करते हुए हेतुको दो प्रकारका कहा है-( १ ) साधनहेतु और ( २ ) दूषणहेतु । स्थानाङ्गसूत्रनिर्दिष्ट हेतुभेद : । स्थानाङ्गसूत्रमे हेतुके चार प्रकारोंका निर्देश है । ये चार प्रकार दार्शिनिकोंके पूर्वोक्त हेतुभेदोंसे भिन्न हैं। इनके अध्ययनसे अवगत होता है कि यतः हेतु और साध्य दोनों अनुमानके प्रयोजक हैं और दोनों कहीं विधिरूप होते हैं, कहीं निषेघरूप, कहीं विधिनिषेधरूप और कहीं निषेधविधिरूप । इन चारके अतिरिक्त अन्य राशि सम्भव नहीं है । अतः हेतुके उक्त प्रकारसे चार भेद मान्य हैं । साध्य और साधन दोनोंके विधि ( सद्भाव ) रूप होनेपर (१) विधि-विधि, दोनोंके निषेध ( अभाव ) रूप होनेपर ( २ ) निषेध-निषेध, साध्यके विधिरूप और साधनके निषेधरूप होनेपर ( ३ ) विधि-निषेध तथा साध्यके निषेधरूप और साधनके विधिरूप होनेपर ( ४ ) निषेधविधि ये चार भेद फलित होते हैं । इन्हें और विशदतासे निम्न प्रकार समझा जा सकता है १. विधिविधि-हेतुके जिस प्रकारमें हेतु और साध्य दोनों सद्भावरूप हों। जैसे-इस प्रदेशमें अग्नि है, क्योंकि धूम है। यहां साध्य ( अग्नि ) और साधन (धूम ) दोनों सद्भावरूप है। इसे 'विधसाधकविधिरूप' हेतु कहा जा सकता है। २. निषेधनिषेध-जिसमें साध्य और साधन दोनों असद्भावरूप हों। यथा- यहां धूम नहीं है क्योंकि अनलका अभाव है। यहां साध्य (धम नहीं) और साधन ( अनलका अभाव ) दोनों असद्भावरूप है । इस हेतुको 'निषेधसाधकनिषेधरूप' नाम दिया जा सकता है । ३. विधिनिषेध-जिसमें साध्य सद्भावरूप हो और साधन असद्भावरूप । जैसे-इस प्राणीमें रोगविशेष है, क्योंकि उसकी स्वस्थ चेष्टा नहीं है। यहां साध्य ( रोगविशेष ) सद्भावरूप है और साधन ( स्वस्थ चेष्टा नहीं ) असद्भावरूप । इसे 'विधिसाधकनिषेधरूप' हेतु कह सकते हैं। ४. निषेधविधि-जिसमें साध्य असद्भावरूप हो और साधन सद्भावरूप । यथा-यहां शीतस्पर्श नहीं है, क्योंकि उष्णता है । यहां साध्य ( शीतस्पर्श नहीं) असद्भावरूप है और हेतु ( उष्णता) सद्भावरूप। इस हेतुको 'निषेधसाधकविधिरूप' हेतुके नामसे व्यवहृत कर सकते हैं। इन हेतुभेदोंपर न कणादके हेतुभेदोंका प्रभाव लक्षित होता है, न अक्षपाद और न धर्मकोतिके। साथ ही इस वर्गीकरणमें जहां कार्य, कारण आदि सभी १. षट्०, धवला टोका ५।५।५१, पृ० २८० । २. स्थाना० सू० पृ० ३०६-३१० तथा यही 'जैन तर्कशास्त्रमें अनुमानविचार' पृ० २३ भो।
SR No.010313
Book TitleJain Tark Shastra me Anuman Vichar Aetihasik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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