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________________ २०६ : जैन तर्कशास्त्रमें अनुमान- विचार धर्मकीर्तिने' भी हेतुके तीन भेद बतलाये हैं । पर उनके तीन भेद उपर्युक्त भेदोंसे भिन्न हैं । वे हैं— ( १ ) स्वभाव, ( २ ) कार्य और ( ३ ) अनुपलब्धि । aroor भी तीन भेदोंका उन्होंने निर्देश किया है - ( १ ) कारणानुपलब्धि, (२) व्यापकानुपलब्धि और ( ३ ) स्वभावानुपलब्धि । प्रमाणवार्तिक में अनुपलब्धिके चार और न्यायबिन्दुमें प्रयोगभेदसे उसके ग्यारह भी भेद कहे हैं । धर्मकीर्तिने कणाद स्वीकृति हेतुभेदोंमेंसे कार्य और विरोधी ( अनुपलब्धि ) ये दो अंगीकार किये हैं तथा कारण, संयोगी और समवायी ये तीन भेद छोड़ दिये हैं, क्योंकि संयोग और समत्राय बौद्धदर्शन में स्वीकृत नहीं हैं, अतः उनके माध्यम से होनेवाले संयोगी और समवायी हेतु सम्भव नहीं हैं । कारणके सम्बन्ध में धर्मकीर्तिका मत है कि कारण कार्यका अवश्य अनुमापक नहीं होता, क्योंकि यह आवश्यक नहीं कि कारण होने पर कार्य अवश्य हो, पर कार्य बिना कारणके नहीं होता । अतः कार्य तो हेतु है, किन्तु कारण नहीं । उनके अनुपलब्धिके तीन भेदोंकी संख्या कणादके अभ्युपगत विरोधिके तीन प्रकारोंको संख्याका स्मरण दिलाती हैं । ध्यान रहे, धर्मकीर्तिने " उपर्युक्त तीन हेतुओं में स्वभाव और कार्यको विधिसाधक तथा अनुपलब्धिको प्रतिसाधक ही वर्णित किया है । धर्मोत्तर, अर्चट आदि व्याख्याकारोंने उनका समर्थन किया है । जैन परम्परा में हेतुभेद : जैन परम्परामें षट्खण्डागम में श्रुतके पर्यायों के अन्तर्गत 'हेदुवाद ' ( हेतुवाद) नाम आया है । पर उसमें हेतु के भेदोंकी कोई चर्चा उपलब्ध नहीं होती । १, एतल्लक्षणो हेतुस्त्रिप्रकार एव । स्वभावः, कार्यम्, अनुपलब्धिश्चेति । - हेतुबि० पृ० ५४ । न्यायवि० पृ० २५ । प्रमाणवा० १ ३,४,५ । २. सेयमनुपलब्धिस्त्रिधा । सिद्ध कार्यकारणभावे सिद्धाभावस्य कारणस्यानुपलब्धिः, व्याप्यव्यापकभावसिद्धौ सिद्धाभावस्य व्यापकस्यानुपब्धिः, स्वाभावानुपलब्धिश्च । - हेतुबि० पृ० ६८ । ३. ( क ) - अनुपलब्धिश्चतुर्विधा । - प्र० वा० ११६ । (ख) सा च प्रयोगभेदादेकादशप्रकारा । — न्यायवि० पृ० ३५ । ४. न्यायबि० पृ० ३५ । ५. अत्र द्वौ वस्तुसाधनौ । एकः प्रतिषेधहेतुः । वही, पृ० २६ | ६. वही, पृ० २५ । धर्मोत्तरटी० । ७. हेतुबि० टो० ५४ । ८. भूतबली - पुष्पदन्त, षट्खं० ५/५/५१ ।
SR No.010313
Book TitleJain Tark Shastra me Anuman Vichar Aetihasik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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