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________________ हेतु-विमर्श : २०॥ भास नहीं, तो हेतु बाधितविषय केसे हो सकता है, जिसके निरासके लिए हेतुका अबाधितविषयत्व नामक चतुर्थ रूप कल्पित किया जाए । सच तो यह है कि अविनाभावी हेतुमें बाधाको सम्भावना ही नहीं है, क्योंकि बाधा और अविनाभावमें विरोध है ।' प्रमाण-प्रसिद्ध अविनाभाववाले हेतुका समानबलशाली कोई प्रतिपक्षी हेतु भी सम्भव नहीं है, अतः हेतुका असत्प्रतिपक्षत्व नामका पांचवा रूप भो निरर्थक है। हम ऊपर षड्लक्षण हेतुका निर्देश कर आये हैं । उनमें एक नया रूप ज्ञातत्व है, जिसका अर्थ है हेतुका ज्ञात होना। पर उसे पृथक रूप मानना अनाववश्यक है, क्योंकि हेतु ज्ञात ही नहीं, अविनाभावी रूपसे निश्चित होकर ही साध्यका अनुमापक होता है, अनिर्णीत नहीं, यह तो हेतुके लिए आवश्यक और प्राथमिक शर्त है । इसी तरह विवक्षितकसंख्यत्वका कथन भी, जो असत्प्रतिपक्षत्वरूप है, अनावश्यक है क्योंकि अविनाभावी हेतुके प्रतिपक्षी किसी द्वितीय हेतुकी सम्भावना हो नहीं है जो प्रकृत हेतुकी विवक्षित एकसंख्याका विघटन कर सके । तात्पर्य यह कि विवक्षितकसंख्यत्व असत्प्रतिपक्षत्वरूप है और वह उपर्युक्त प्रकारसे अनावश्यक है। कर्णकगोमिने रोहिणीके उदयका अनुमान कराने वाले कृत्तिकोदय हेतुमें काल या आकाशको पक्ष बना कर पक्षधर्मत्व घटानेका प्रयास किया है। विद्या. नन्दने इसको मीमांसा करते हुए कहा है कि इस तरह परम्पराश्रित पक्षधर्मत्व सिद्ध करनेसे तो पृथिवीको पक्ष बना कर महानसगत धूमसे समुद्र में भी अग्नि सिद्ध करनेमें वह पक्षधर्मत्वरहित नहीं होगा। व्यभिचारी हेतुओंमें भी काल, आकाश और पृथिवी आदिकी अपेक्षा पक्षधर्मत्व घटाया जा सकेगा । और इस तरह कोई व्यभिचारी हेतु अपक्षधर्म न रहेगा। उपर्युक्त अध्ययनसे प्रकट है कि जैन चिन्तकोंने द्विलक्षण,विलक्षण, चतुर्लक्षण, पंचलक्षण, षड्लक्षण और सप्तलक्षणको अव्याप्त तथा अतिव्याप्त होनेसे उन्हें हेतुका स्वरूप स्वीकार नहीं किया। प्रत्युत उनकी विस्तृत समीक्षा की है। उन्होंने एक १. हेतुबि० पृ० ६८, हेतुवि० टी० पृ० २०६ । २. साध्याविनामावित्वेन निश्चितो हेतुः । -परीक्षामु० ३।१५। ३. डा. महेन्द्रकुमार जैन, सिद्धिवि० प्र० भा० प्रस्ता० पृ० ११६ । ४. प्र० वा० स्ववृ० टी० पृ० ११ ।। ५. विद्यानन्द, प्र. परी० पृ० ७१ । त० श्लो० मा० १६१३, पृ० २०१।
SR No.010313
Book TitleJain Tark Shastra me Anuman Vichar Aetihasik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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