SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 189
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६२ : जैन तर्कशास्त्रमें अनुमान-विचार ___ इन चारों उद्धरणोंमें समन्तभद्रने गृपिच्छसे अधिक विकसित अनुमानप्रणालीको प्रस्तुत कर उसके तीन अवयवों ( प्रतिज्ञा, हेतु और दृष्टान्त ) से अनुमेयको सिद्धि की है। अतः प्रकट है कि उन्हें ये तीन अवयव मान्य रहे हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि समन्तभद्रके उक्त प्रतिपादनपरस यह स्पष्ट नहीं होता कि उन्होंने उक्त तीन अवयवोंका प्रयोग किस प्रकारके प्रतिपाद्य ( विनेय ) की अपेक्षासे किया है-व्युत्पन्न या अन्युत्पन्न ? प्रकरणके अध्ययनसे ज्ञात होता है कि उनका उक्त कथन प्रतिपाद्यसामान्यकी अपेक्षासे हुआ है । आ० गृपिच्छका भी निरूपण अविशेष रूपसे ही हुआ है। जैन न्यायके विकासक्रममें समन्तभद्रके पश्चात् न्यायावतारकार सिद्धसेनका महत्त्वपूर्ण योगदान है। सिद्धसेनने न्यायावतार में पक्षादि वचनको परार्थानुमान कहकर उसके पक्ष, हेतु और दृष्टान्त इन तीन अवयवोंका स्पष्टतः निर्देश किया है तथा प्रत्येकका स्वरूप-विवेचन भी किया है । 'पक्षादि वचन' के प्रयोगसे संकेतित होता है कि न्यायावतारके पूर्व उक्त तीन अक्यवोंको मान्यताकी पूर्णतया प्रतिष्ठा हो चुकी थी। यत: 'आदि' शब्द द्वारा संगृह्यमाण तथ्योंका अध्याहार तभी किया जाता है जब वे सर्वमान्यरूपमें प्रसिद्ध एवं प्रचलित हो जाते हैं और वक्ता जिन्हें अभिप्रायमें रखता है। हम लोकमें देखते हैं कि जानेवाले व्यक्तियोंमें राम, श्याम आदिका कथन करने पर 'आदि' शब्द राम, श्यामके महत्त्वको तो प्रकट करता ही है, पर संगृह्यमाणोंको भी सामान्यतया प्रतिपादित करता है। अतएव यह निष्कर्ष निकालना दूरकी कड़ी मिलाना नहीं होगा कि सिद्धसेनने 'पक्षादि' शब्दके प्रयोगद्वारा त्रिरवयवको प्रसिद्ध मान्यता एवं सर्वबोधगम्यताको व्यक्त किया है । ___ जैन ताकिकोंमें सिद्धसेन ही प्रथम तार्किक हैं, जिन्होंने उक्त तीन अवयवोंके निरूपणमें प्रतिज्ञाके स्थान में 'पक्ष' शब्दका प्रयोग किया है । भारतीय तर्कशास्त्रके प्रकाशमें 'पक्ष' शब्दके इतिहासको देखनेसे ज्ञात होता है कि प्रतिज्ञाके स्थानमें 'पक्ष' का प्रयोग सर्वप्रथम दिङ्नाग या उनके शिष्य शंकरस्वामीने किया है। और सम्भवतः उनका अनुकरण सिद्धसेनने किया होगा। ___ सिद्धसेनके उक्त अवयवसम्बन्धी स्पष्ट प्रतिपादनसे उनका महत्त्व निम्न लिखित कारणोंसे बढ़ जाता है १. साध्याविनाभुवो हेतोर्वचो यत्प्रतिपादकम् । परार्थानुमानं तत् पक्षादिवचनात्मकम् ॥ -न्यायाव० का० १३ । तथा १४, १७, १८ और १९ भी देखिए । २, ३. पक्षादिवचनानि साधनम् । पक्षहेतुदृष्टान्तवचनैहि प्राश्निकानामप्रतीतोऽर्थः प्रति पायते। "एतान्येव त्रयोऽवयवा इत्युच्यन्ते। -न्या० प्र० पृ० १,२।
SR No.010313
Book TitleJain Tark Shastra me Anuman Vichar Aetihasik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy