SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १० : जैन तर्कशास्त्रमें अनुमान-विचार उपसंहारमें जैन अनुमानको कतिपय उपलब्धियोंका निर्देश है जो जैन ताकिकोंके स्वतन्त्र चिन्तनका फल कही जा सकती हैं। ऊपर कहा गया है कि यह शोध-प्रवन्ध माननीय डा. नन्दकिशोर देवराज एम. ए., डी. फिल., डी. लिट., अध्यक्ष दर्शन-विभाग तथा निर्देशक उच्चानुशीलन दर्शन-संस्थान और डीन आर्टस् फैकल्टी काशी हिन्दू विश्वविद्यालयके निर्देशनमें तैयार किया। डा. देवराजसे समय-समयपर बहुमूल्य निर्देशन और मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। सम्प्रति उन्होंने प्राक्कथन भी लिख देनेकी कृपा की है। इसके लिए मैं उनका बहुत आभारी हूँ। सुहृद र डा. नेमिचन्द्र शास्त्री एम. ए. ( संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी ), पी-एच. डो., डी. लिट्., ज्योतिपाचार्य, अध्यक्ष प्राकृत-संस्कृत विभाग जैन कालेज आराको नहीं भूल सकता, जिन्होंने निरन्तर प्रेरणा, परामर्श और प्रवर्तन तो किया ही है अपना पुरोवाक भी लिखा है । वे मुझे अग्रज मानते हैं, पर विशिष्ट और बहुमुखी मेधाकी अपेक्षा मैं उन्हें ज्ञानाग्रजके रूपमें देखता व मानता हूँ। अतएव मैं उन्हें धन्यवाद दूँ तो उचित ही है । जिन साहित्य-तपस्वी श्रद्धेय आ० जुगलकिशोर मुख्तारने सत्तर वर्ष तक निरन्तर साहित्य-साधना और समाज-सेवा की तथा साधना और सेवाका कभी प्रतिदान या पुरस्कार नहीं चाहा, आज उनका अभाव अखर रहा है । आशा है इस प्रबन्धकृतिसे, जिसे मैंने उनके ६२ वें जन्मदिनपर उन्हें एक मुद्रित फर्मा द्वारा समर्पण किया था और जिसका प्रकाशन उनकी सदिच्छानुसार उन्हीं के ट्रस्टसे हो रहा है, उनकी उस सदिच्छाकी अवश्य पूर्णता होगी। मेरा उन्हें परोक्ष नमन है। स्याद्वाद महाविद्यालय वाराणीके अकलंक सरस्वतीभवनसे शतशः ग्रन्थोंका उपयोग किया और जिन्हें अधिक काल तक अपने पास रखा । काशी हिन्दू विश्वविद्यालयके गायकबाड़ ग्रन्थागार, जैन सिद्धान्त भवन आरा और पार्श्वनाथ जैन विद्याश्रम वाराणसीसे भी कुछ ग्रन्थ प्राप्त हुए। हमारे कालेजके सहयोगी प्राध्यापक मित्रवर डा. गजानन मुशलगांवकरने मीमांसादर्शनके और श्री मूलशंकर व्यासने वेदान्तके दुर्लभ ग्रन्थ देकर सहायता की। अनेक ग्रन्थकारों और ग्रन्थसम्पादकोंके ग्रन्थोंसे उद्धरण लिए । प्रिय धर्मचन्द्र जैन एम. ए. ने विषय-सूची और परिशिष्ट बनाये । इन सबका हृदयसे धन्यवाद करता हूँ। साथ ही अपनी गृहिणी सौ० चमेलीबाई 'हिन्दीरत्न' को भी उसकी सतत प्रेरणा, सहायता, परिचर्या और अनुरूप सुबिधा प्रदानके लिए धन्यवाद है। अन्तमें महावीर प्रेसके संचालक श्री बाबूलालजी फागुल्लको भी धन्यवाद दिये बिना नहीं रह सकता, जिन्होंने ग्रन्थका सुन्दर मुद्रण किया और मुद्रणसम्बन्धी परामर्श दिये। -दरबारीलाल कोठिया
SR No.010313
Book TitleJain Tark Shastra me Anuman Vichar Aetihasik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy