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________________ अनुमानभेद-विमर्श : १०९ क्योंकि वह उनसे पूर्व दर्शन-ग्रन्थोंमें उपलब्ध नहीं होती। जब लिङ्गसे लिङ्गी ( अनुमेयार्थ ) का ज्ञान स्वयं किया जाता है तब स्वनिश्चितार्थानुमान ( स्वार्थानुमान ) कहलाता है और जब स्वनिश्चित अनुमेयार्थका प्रतिपादन पञ्चावयव वाक्य द्वारा दूसरोंके लिए किया जाता है. जिन्हें अनुमेय में सन्देह, भ्रान्ति या अनिश्चय है, तब वह परार्थानुमान कहा जाता है । मीमांसा : मीमांसादर्शनमें शबरस्वामी द्वारा प्रशस्तपादकी तरह अनुमानके द्वितीय प्रकारके भेद तो स्वीकृत नहीं है, किन्तु प्रथम प्रकारके भेद स्वीकृत हैं। इतना ही अन्तर है कि प्रशस्तपादके अनुमानके प्रथम भेदका नाम 'दृष्ट' है और शबरस्वामोके अनुमानका आद्य भेद 'प्रत्यक्षतोदृष्टसम्बन्ध' । इसी तरह अनुमानके दूसरे भेदका नाम प्रशस्तपादने 'सामान्यतोदृष्ट' और शबरने 'सामान्यतोदृष्टसम्बन्ध' दिया है। दोनों लगभग समान ही हैं। सम्भव है दोनों दर्शनोंके इन अनुमानभेदोंके मूलमें एक ही विचारधारा रही हो या एकने दूसरेका कुछ परिवर्तनके साथ अनुसरण किया हो। ___ इन दोनों दर्शनोंके अनुमानके दूसरे भेदपर गौतमके न्यायमूत्रोक्त तीसरे अनुमान 'सामान्यतादृष्ट' का प्रभाव हो, तो आश्चर्य नहीं, क्योंकि न्यायमूत्रमें वह उनसे पहले उपलब्ध है। न्याय : अक्षपादने अनुमानके तीन भेद प्रतिपादित किये हैं ---१. पूर्ववत्, २ शेपवत् और सामान्यतोदृष्ट । न्यायभाष्यकारने' इन्हीं तीनका समर्थन किया है और उनकी दो व्याख्याएँ प्रस्तुत की हैं । न्यायवात्तिकारने न्यायसूत्र और न्यायभाष्यके समर्थनके अतिरिक्त अनुमानके केवलान्वयो, केवलव्यतिरेकी और अन्वयव्यतिरेकी ये तीन नय भेद भी परिकल्पित किये हैं । 'त्रिविधम्की व्याख्यारूपमें उन्होंने सर्वप्रथम यही तीन भेद दिखाये हैं । इसके बाद अन्य व्याख्याएँ दी हैं। इन व्याख्याओंमें न्यायभाष्योक्त १. तत्तु द्विविधम् । प्रत्यक्षतोद्रष्टसम्बन्धं सामान्यतोदृष्टसम्बन्धं च । -शा० भा० ११५, पृ०३६ । २. अथ तत्पूर्वकं त्रिविधमनुमानं पूर्ववच्छेषवत्सामान्यतोदृष्टं च । -न्या० सू० ११११५ । ३. न्या० भा० ११११५, पृ० २३ । ४. त्रिविधमिति । अन्वयी व्यतिरेकी अन्वयव्यतिरेकी चेति । न्या० वा० ११११५, पृ० ४६ ।
SR No.010313
Book TitleJain Tark Shastra me Anuman Vichar Aetihasik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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