SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय:३ प्रथम परिच्छेद अनुमानभेद-विमर्श पिछले अध्यायमें अनुमानके स्वरूपकी मीमांसा की गयी है। यहाँ उसके भेदोंपर विमर्श किया जायेगा। वैशेषिक : वैशेषिकसूत्रकारने' लिङ्ग ( हेतु )से उत्पन्न होनेवाले लैङ्गिक ( अनुमान )के पांच भेदोंका निर्देश किया है। वे ये हैं-१ कार्य, २ कारण, ३ संयोगि, ४ विरोधि और ५ समवायि। पर वस्तुतः ये लिङ्गके भेद हैं । कारणमें कार्यका उपचार करके उन्हें लैङ्गिकके भेद कहा गया है। भाष्यकार प्रशस्तपादने अन्य दो प्रकारसे अनुमानके भेदोंका प्रतिपादन किया है। प्रथम प्रकारसे दृष्ट और सामान्यतोदृष्ट ये दो भेद हैं तथा द्वितीय प्रकारसे स्वनिश्चितार्थानुमान और परार्थानुमान ये दो हैं। द्वितीय प्रकारसे इन दो भेदोंकी कल्पना भाष्यकारकी स्वोपज्ञ जान पड़ती है, १. अस्येदं कार्य कारणं संयोगि विरोधि समवायि चेति लैङ्गिकम् । -वैशे० सू० ९।२।१। २. (क) तत्तु द्विविधं दृष्टं सामान्यतोदृष्टं च । -प्रश० भा० पृ० १०४ । (ख) अथवाऽग्निशानमेव प्रमाणं प्रमितिरग्नौ गुणदोषमाध्यस्थ्य-दर्शनमित्येतत्स्वनिश्चितार्थमनुमानम्। पञ्चावयवेन वाक्येन स्वनिश्चितार्थप्रतिपादनं परार्थानुमानम् । पञ्चावयवेनैव वाक्येन संशयित-विपर्यस्ताव्युत्पन्नानां परेषां स्वनिश्चितार्थप्रतिपादनं परार्थानुमानं शेयम् । -वही, पृ० १०६, ११३ ।
SR No.010313
Book TitleJain Tark Shastra me Anuman Vichar Aetihasik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy