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________________ ९० : जैन तर्कशास्त्रमें अनुमान-विचार होती, यह सब कार्यकारणको अविच्छिन्न शृंखला ही तो है। इस तरह हम अनुमानके महत्त्व, उपयोगिता, आवश्यकता और अनिवार्यताको अनायास आंक सकते हैं। (ग) अनुमानको परिभाषा : अनुमानशब्दकी निरुक्ति ( अनु + मान )के अनुसार पश्चाद्वर्ती ज्ञानकी अनुमानसंज्ञा है। प्रश्न उठता है कि प्रत्यक्षको छोड़कर शेष सभी (स्मृति, प्रत्यभिज्ञा आदि) ज्ञान प्रत्यक्षके पश्चात् ही होते हैं। ऐसी स्थितिमें ये सब ज्ञान भी अनुमान कहे जायेंगे । अतः अनुमानसे पूर्व वह कौन-सा ज्ञान विवक्षित है जिसके पश्चात् होने वाले ज्ञानको अनुमान कहा है ? इसका उत्तर यह है कि अनुमानका अव्यवहित पूर्ववर्ती वह ज्ञानविशेष है, जिसके अव्यवहित उत्तरकालमें अनुमान उत्पन्न होता है । वह ज्ञानविशेष है व्याप्ति-निर्णय । तर्क-ऊह-चिन्ता)। उसके अनन्तर नियमसे अनुमान होता है । लिंगदर्शन, व्याप्तिस्मरण और पक्षधर्मताज्ञान इनमें से कोई भी अनुमानके अव्यवहित पूर्ववर्ती नहीं है। लिंगदर्शन व्याप्तिस्मरणसे, व्याप्तिस्मरण पक्षधर्मताज्ञानसे और पक्षधर्मताज्ञान व्याप्ति-निश्चयसे व्यवहित है । अतः लिंगदर्शन, व्याप्तिस्मरण और पक्षधर्मताज्ञान व्याप्ति-निश्चयसे व्यवहित होनेसे अनुमानके साक्षात् पूर्ववर्ती नहीं हैं। यद्यपि पारम्पर्य से उन्हें भी अनुमानका जनक माना जा सकता है । पर अनुमानका अव्यवहित पूर्ववर्ती ज्ञान व्याप्ति-निश्चय ही है, क्योंकि उसके अव्यवहित उत्तरकालमें नियमसे अनुमान आत्मलाभ करता है । अतः व्याप्तिनिश्चय ही अनुमानका पूर्ववर्ती ज्ञान है। आ० वादिराज भी यही लिखते हैं अनु व्याप्तिनिर्णयस्य पश्चाद्भावि मानमनुमानम् । २ । व्याप्ति-निर्णयके पश्चात् होने वाले मान-प्रमाणको अनुमान कहते हैं । वात्स्यायन अनुमानशब्दको निरुक्ति इस प्रकार बतलाते हैं-'मितेन लिंगेन लिंगिनोऽर्थस्य पश्चान्मानमनुमानम्'3---प्रत्यक्षप्रमाणसे ज्ञात लिंग द्वारा लिंगी-अर्थ के अनु-पश्चात् उत्पन्न होने वाले ज्ञानको अनुमान कहते हैं। तात्पर्य यह कि लिंगज्ञानके पश्चात् जो लिंगी-साध्यका ज्ञान होता है वह अनुमान है। वे एक दूसरे स्थलपर और कहते हैं कि-'स्मृत्या लिंगदर्शनेन चा. १. व्याप्तिविशिष्टपक्षजर्मताशानजन्यं ज्ञानमनुमितिः । तत्करणमनुमानम् । -गंगेश, त० चि० अनु० जागदी० पृष्ठ १३ । १. न्या० वि० वि० द्वि० भा० ।। २. न्यायमा० १॥१॥३।
SR No.010313
Book TitleJain Tark Shastra me Anuman Vichar Aetihasik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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