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________________ अनुमान-समीक्षा : ८७ से अनुमान कहा जाएगा। अतः अनुमानप्रामाण्यके निषेधका प्रथम कारण युक्त नहीं है, वह अतिप्रसंग दोष-सहित है।' (२) यह सच है कि कभी अनुमानसे पहले प्रत्यक्ष होता है, पर यह सार्वदिक एवं सार्वत्रिक नियम नहीं है। कहीं और कभी प्रत्यक्षसे पूर्व अनुमान भी होता है। जैसा कि हम ऊपर देख चुके हैं कि कोई पुरुष अग्निका अनुमान करके बादको वह उसका प्रत्यक्ष : साक्षात्कार ) करता है। ऐसी दशामें अनुमान प्रत्यक्षसे पूर्ववर्ती होनेके कारण मुख्य माना जाएगा और प्रत्यक्ष गौण । तब प्रत्यक्ष गौण होनेसे अप्रमाण और अनुमान मुख्य होनेसे प्रमाण सिद्ध होगा । अतः दूसरा कारण भी अनुमानके प्रामाण्यका प्रतिषेधक सिद्ध नहीं होता। ( ३ ) तीसरा कारण भी युक्त नहीं है, क्योंकि अनुमानमें विसंवादित्व बतानेके लिए जो उदाहरण दिये गये हैं वे सब अनुमानाभासके उदाहरण हैं। जो हेतु साध्यका व्यभिचारी है वह हेतु ही नहीं है - वह तो हेत्वाभास है। शक्रमर्धा और गोपालघटिकामें जो धूमसे अग्निके अनुमानकी बात कही गयी है उस पर हमारा प्रश्न हैं कि शक्रमूर्धा और गोपालघटिका अग्निस्वभाव हैं या नहीं ? यदि अग्निस्वभाव है तो अग्निसे उत्पन्न धूम अग्निका व्यभिचारी कैसे हो सकता है ? और यदि वे अग्निस्वभाव नहीं है तो उनसे उत्पन्न होने वाला पदार्थ धूम कैसे कहा जा सकता है ? लोकमें अन्निसे पैदा होने वाले अविच्छिन्न पदार्थको ही धूम कहा जाता है। साध्य-साधनके सम्यक् अविनाभावका ज्ञाता उक्त प्रकारको भूल नहीं कर सकता। वह अविनाभावी साधनसे ही साध्यका ज्ञान-अनुमान करेगा, अविनाभावरहित हेतुसे नहीं। वह भले ही ऊपरसे हेतु जैसा प्रतीत हो, पर हेतुलक्षण ( अविनाभाव ) रहित होनेके कारण वह हेत्वाभास है और हेत्वाभासोंसे उत्पन्न साध्यज्ञान दोषपूर्ण अर्थात् अनुमानाभास समझा जाएगा। अतः शक्रमर्धा और गोपालघटिकामें दृष्ट धूम धूम नहीं है, धूमाभास है-उसे भ्रमसे धम समझ लिया है । और इसलिए उसके द्वारा उत्पन्न अग्निका ज्ञान अनमान नहीं, अनुमानाभास है। १. प्र० परी० पृष्ठ ६४ । २. वही, पृष्ठ ६४। ३. अग्निस्वभावः शक्रस्य मूर्द्धा चेदग्निरेव सः । अथानग्निस्त्रभावोऽसौ धूमस्तत्र कथं भवेत् ॥ -धर्मकीर्ति, प० वा० ११३८, तथा प्रमेयर० मा० २।२, पृ० ४६ । ४. यादृशो हि धूमो ज्वलनकार्य भूधरनितम्बादावतिवहलधवलतया प्रसर्पन्नुपलम्यते न तादृशो गोपालघटिकादाविति । -प्रमेयर० मा० २।२, पृष्ठ ४६ ।
SR No.010313
Book TitleJain Tark Shastra me Anuman Vichar Aetihasik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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