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________________ अनुमान - समीक्षा : ७७ ( १ ) प्राचीन जैन परम्परामें अनुमान प्रमाणको स्वीकार किया गया है । तत्त्वार्थ सूत्र में यद्यपि 'अनुमान' शब्द उपलब्ध नहीं होता, पर उसका निर्देश 'अभिनिबोध' शब्द के द्वारा किया गया है । यह 'अभिनिबोध' ही अनुमानका प्राचीन मूल रूप है और उसे परोक्ष प्रमाणके अन्तर्गत परिगणित किया गया है । ( २ ) 'अभिनिबोध' अनुमानका प्राचीन रूप है, इस कथनकी पुष्टि अकलंक, विद्यानन्द और श्रुतसागर प्रभृति व्याख्याकारोंकी व्याख्याओंसे होती है । अकलंकने लघीयस्त्रयमें एक कारिकाको व्याख्याके प्रसंग में 'अभिनिबोध' का व्याख्यान 'अनुमान' किया है 1 'अविसंवादस्मृतेः फलस्य हेतुत्वात् प्रमाणं धारणा स्मृतिः संज्ञायाः प्रत्यवमर्शस्य । संज्ञा चिन्तायाः तकस्य । चिन्ता अभिनिबोधस्य अनुमानादेः: ' ।' यहाँ अकलंकने अभिनिबोधका अर्थ 'अनुमान' दिया है । विद्यानन्द तत्त्वार्थ श्लोकत्रार्तिक में अभिनिबोधशब्दको व्युत्पत्ति द्वारा उसका अनुमान अर्थ फलित करते हैं और आगममें 'अभिनिबोध' शब्द मतिज्ञानसामान्य के अर्थ में प्रयुक्त होनेसे उत्पन्न सिद्धान्त - विरोधका वे परिहार भी करते हैं । यथा तत्साध्याभिमुखो बोधी नियतः साधनेन यः । कृतोऽनिन्द्रिययुक्तेनाभिनिबोधः स लक्षितः ॥ २ · इस वार्तिककी व्याख्या में उन्होंने लिखा है कि साध्याविनाभावी साधनसे जो शक्य, अभिप्रेत और असिद्धरूप साध्यका ज्ञान होता है वह अनुमान है । और यह अनुमान ही अभिनिबोधका लक्षण ( स्वरूप ) है, क्योंकि साध्य कोटि में प्रविष्ट और नियमित अर्थके मनसहित साधन द्वारा होने वाले अभिबोध ( ज्ञान को afभfनबोध कहा जाता है । यद्यपि आगम में अभिनिबोध शब्द मतिज्ञानसामान्य के अर्थ में आया है, स्वार्थानुमानरूप मतिज्ञानविशेषके अर्थ में नहीं, तथापि प्रकरणविशेष और शब्दान्तरके संनिधान आदिसे सामान्यशब्द की प्रवृत्ति विशेष में भी देखी जाती है । जैसे 'गो' शब्द श्यामा, कृष्णा आदि गोविशेषके अर्थ में प्रयुक्त होता हुआ देखा जाता है । तात्पर्य यह कि अभिनिबोध शब्द मतिज्ञानसामान्यवाची होते हुए भी प्रकरणवश स्वार्थानुमानरूप मतिज्ञानविशेषका बोधक है । विद्यानन्द इसी ग्रन्थ में आगे और स्पष्ट करते हुए कहते हैं १. लघोय० स्वो० वृ० का० १० । २. त० इला० १।१३ । १२२, पृष्ठ १९७, १९८ । ३. षट्ख० १ १ ११५ तथा ११९ - १।१४ और ५।५।२१ आदि ।
SR No.010313
Book TitleJain Tark Shastra me Anuman Vichar Aetihasik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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