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________________ ३५२ वडी माधु वन्दना पछि इन्द्र हटायो, दियो छ. काय अभयदान | २१ | करकण्डू प्रमुख, चारे प्रत्येक बुद्ध । मुनि मुक्ति पहुत्या, जीत्या कर्म महाजुद्ध | २२ धन्य म्होटा मुनिवर, मृगापुत्र जगीश | मुनिवर नाथी, जीत्या राग ने रीश | २३ | वलि समुद्रपाल मुनि, राजमति रहनेम । केशी ने गौतम, पाम्या शिवपुर क्षेम | २४| धन्य विजयघोष मुनि, जयघोप वलि जाण । श्री गर्गाचार्य पहुत्या छे निर्वाण | २५ | श्री उत्तराध्ययन माँ, जिनवर करया वखाण । शुद्ध मन से ध्यावो, मन माँ धीरज आण । २६ । वलि खदक सन्यासी, राख्यो गौतम स्नेह | महावीर समीपे, पच महाव्रत लेह |२७| तप कठिन करीने, झोसी अपणी देह | गया अच्युत देवलोके, चवि लेमे भव-छेह | २८ वलि ऋषभदत्त मुनि, मेठ सुदर्शन सार । शिवराज ऋषीश्वर, धन्य गांगेय अणगार |२६| शुद्ध संयम पाली, पाम्या केवल सार । ये चारे मुनिवर, पहुंत्या मोक्ष मँझार |३०| भगवन्त नी माता धन्य धन्य सती देवानदा । वलि सती जयन्ती, छोड दिया घर फंदा । ३१ । सती मूक्ति पहुत्या, वलि ते वीरनी नन्द | महासती सुदर्शना, घणी सतियो ना वृन्द । ३२।
SR No.010312
Book TitleJain Swadhyaya Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh Sailana MP
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1965
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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