SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 367
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५० वडी साधु वन्दना एहवा पुरुपारी सेवा करता, पावे अमर विमान रे प्राणी । साथ् ।। सवत अठार ने वर्प अडतीसे, वसी गांव चीमास रे प्राणी। मुनि ग्रासकरणजी इण पर जपे, हुं उतम साधा रो दासरे । १०। बड़ी साधु वन्दना नम अनन्त चौवीसी, ऋपमादिक महावीर । प्रारज क्षेत्रमा, घाली धर्म नी शीर ॥१॥ महा प्रतुल बली नर, शर वीर ने धीर । तीरथ प्रवर्तावी, पहूच्या भव जल तीर ।२। सीमधर प्रमुख, जघन्य तीर्थकर वीश । के अढी द्वीप माँ, जयवता जगदीश ।। एक सौ ने सित्तर, उत्कृष्ट पदे जगीश । धन्य म्होटा प्रभुजी, तेह ने नमा शीश ।४। केवली दोय कोडी, उत्कृष्टा नबकोड़। मुनि दीय सहस्र कोडी, उत्कृप्टा नव सहत्र कोड ५१ विचरे विदेहे, म्होटा तपसी घोर । भावे करी बन्दू, टाले भवनी खोड ।६। चौवीसे जिनना, सघला ही गणधार । चौदसे ने बावन, ते प्रण, सुखकार ।७। जिन शासन नायक,धन्य श्रीवीर जिनंद । गोतमादिक गणधर, वर्तायो अानन्द ।। श्री ऋषभदेव ना, भरतादिक सो पूत । वैराग्य मन प्राणी, संयम लियो अद्भुत है।
SR No.010312
Book TitleJain Swadhyaya Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh Sailana MP
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1965
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy