SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 279
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६४ नन्दीसूत्र-श्रुतज्ञान से कि त कालिग्रोवएसेण ? कालिग्रोवएसेण जस्स ण अत्थि ईहा, अवोहो, मग्गणा, गवेसणा, चिंता, वीमंसा, से ण सण्णीति लगभइ, जस्स ण णत्थि ईहा, अवोहो, मग्गणा गवसणा, चिंता, वीमसा, से णं असण्णीति लभइ, से त्त कालिग्रोवएसेण । से कि त हेऊवएमेणं ? हेऊवएसेण जस्सणं अत्थि अभिसधारणपुब्विया करणसत्ती से ण सण्णीति लन्मइ । जस्स ण नत्थि अभिसधारणपुत्रिया करणसत्ती से ण असण्णीति लभइ । से त हेऊबएसेण । से किं तं दिट्ठिवाग्रोवएसेण ? दिदिवाओवएसेण सण्णिसुयस्स खोवसमेण सण्णी लव्भइ, असण्णिसुयस्स खग्रोसमेण असण्णी लन्भइ । से त दिठुिवाओवएसेण । से त सण्णिसुयं । से तं अस ण्णिसुयं ।। सूत्र-४१ से किं त सम्ममुय ? सम्मसुयं ज इम परहतेहिं भगवतेहिं उप्पण्णनाणदसणधरेहिं तेलुक्कनिरिक्खयमहियपूइएहिं तीयपडप्पण्णमणागयजाणएहि सव्वण्णहि सव्वदरिसीहि पणीय दुवालसंग गणिपिडगं, तजहा-पायारो, सुयगडो, ठाण, समवायो, विवाहपण्णत्ती, नायाधम्मकहानो, उवासगदसाओ, अंतगडदसायो, अणुत्तरोववाइयदसानो, पण्हावागरणाई, विवागसुय, दिट्ठिवानो, इच्चेय दुवालसगं गणिपिडगं चोद्दसपुव्विस्स सम्मसुय, अभिण्णदमपुव्विस्स सम्मसुयं, तेण पर भिण्णेसु भयणा। से त सम्मसुय । सूत्र-४२ से कि त मिच्छासुयं ? मिच्छासुयं ज इमं अण्णाणिएहिं मिच्छादिट्टिएहिं सच्छदवृद्धिमइविग्गप्पिय, तजहाभारहं, रामायणं, भीमासुक्ख, कोडिल्लय, सगडभद्दियात्रो,
SR No.010312
Book TitleJain Swadhyaya Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh Sailana MP
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1965
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy