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________________ २६२ नन्दीसूत्र-मतिज्ञान सखेज्जं वा कालं असंखेज्जं वा कालं । से · जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्त सुमिण पासिज्जा, तेण सुमिणेत्ति उग्गहिए, नो चेव ण जाणइ के वेस सुमिणेत्ति, तो ईहं पविसइ, तो जाणइ-अमगे एस सुमिणे, तो अवाय पविसइ, तनो से उवगय हवइ, तो धारण पविसइ, तो ण धारेइ सखेज्ज वा काल, असंखेज्जं वा काल । से तं मल्लगदिट्ठतेण। सूत्र-३७ त समासो चउविवह पण्णत्तं, तंजहा-दव्वो , खित्तो, कालो, भावो । तत्य दव्वनो ण आभिणिब्रोहियनाणी पाएसेण सव्वाइ दवाइ जाणइ. न पासइ । खेत्तो ण आभिणिवोहियनाणी पाएसेण सव्वं खेत्तं जाणइ, न पासइ । कालो ण आभिणिबोहियनाणी आएसेण सव्व काल जाणइ, न पासइ । भावनो ण प्राभिणिबोहियनाणी पाएसेण सम्बे भावे जाणइ, न पास। उग्गह ईहाऽवाओ य, धारणा एव हुंति चत्तारि । आभिणिवोहियनाणस्स, भेयवत्थू समासेण |८२॥ अत्थाण उग्गहणम्मि, उग्गहो तह वियालणे ईहा। ववसायम्मि अवायो, धरण पुण धारण विति ।८३। उग्गह इक्क समय, ईहावाया मुहुत्तमद्धं तु । कालमसख संख च, धारणा होइ नायव्वा ।८४। पुट्ठ सुणेइ सइं, रूवं पुण पासइ अपुळं तु । गंध रसं च फास च, बद्धपुढें वियागरे ।८५ भासासमसेढीओ, सद्द ज सुणइ मीसिय सुणइ ।
SR No.010312
Book TitleJain Swadhyaya Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh Sailana MP
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1965
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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