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________________ २४६ नन्दीमूत्र-परिपद प्रकार । ज्ञानाधिकार पाए पावयणीण, पडिच्छयसएहिं पणिवइए ।४६। जे अण्णे भगवंते, कालियसुयप्राणुओगिए धीरे । ते पणमिऊण सिरसा, नाणस्स परूवणं वोच्छ ।५०। सेलघण, कुडग, चालणि, परिपूणग, हस, महिस, मेसे य। मसग, जलग, बिराली, जाहग, गो, भेरी, पाभीरी ५११ सा समासो तिविहा पन्नत्ता, तजहा-जाणिया, अजाणिया, दुब्बियड्डा । जाणिया जहा खीरमिव जहा हसा जे घटुंति इह गुरुगुण समिद्धा । दोसे य विवज्जति, त जाणसु जाणिय परिस !५२॥ अजाणिया जहाजा होइ पगइमहुरा, मियछाक्यसीहकुमकुडयभूआ । रयणमिव असठविया, अजाणिया सा भवे परिमा ।५३। दुब्बियड्डा जहान य कत्थइ निम्मानो, न य पुच्छइ परिभवस्स दोसेण । वत्यिव्व वायपुण्णो, फुट्टइ गामिल्लयदुवियड्ढो ।५४। सूत्र-१ नाण पचविहं पण्णत्त, तजहा-आभिणिवोहियनाण, सुयनाण, ओहिनाणं, मणपज्जवनाण, केवलनाण । सूत्र-२ तं समासो दुविह पण्णत्त, तजहा-पच्चक्खं च परोक्ख च। सूत्र-३ से किं तं पच्चक्खं ? पच्चक्खं दुविह पण्णत्तं, तजहा-इंदियपच्चक्खं, णोइदियपच्चक्खं च। सूत्र-४ से किं त 'इंदिय पच्चक्ख ? इदियपच्चक्ख पंचविह पण्णत्त, तंजहा-सोइदियपच्चक्खं, चविखदियपच्चखं,
SR No.010312
Book TitleJain Swadhyaya Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh Sailana MP
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1965
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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