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________________ जैन स्वाध्यायमाला २२१ गंधरो फासो चेव, भइए सठाणो वि य ।३४। फासो कक्खडे जे उ, भइए से उ वण्णो । गधयो रसग्रो चेव, भइए सठाणगो वि य ।३५॥ फासो मउए जे उ, भइए से उ वण्णो । गधओ रसो चेव, भइए सठाणो वि य ।३६। फासो गुरुए जे उ, भइए से उ वण्णयो। गंधो रसओ चेव, भइए सठाणो वि य ।३७। फासो लहुए जे उ, भइए से उ वण्णो । गधयो रसो चेव, भइए सठाणो वि य ।३८। फासो सीयए जे उ, भइए से उ वण्णो । गधो रसो चेव, भइए सठाणयो वि य ।३६ फासो उहए जे उ, भइए से उ वण्णो । गधो रसो चेव, भइए संठाणो वि य ।४०॥ फासो निद्धए जे उ, भइए से उ वण्णयो। गधो रसमो चेव, भइए सठाणो वि य ।४१॥ फासो लुक्खए जे उ, भइए से उ वण्णो । गंधो रसो चेव, भइए संठाणो वि य ।४२॥ परिमडलस ठाणे, भइए से उ वण्णो । गधयो रसो चेव, भइए फासो वि य ।४३। सठाणो भवे वट्टे, भइए से उ वण्णयो। गधो रसओ चेव, भइए से फासओ वि य ।४४। सठाणो भवे तसे, भइए से उ वण्णो । गधयो रसग्रो चेव, भइए से फासो वि य ।४५॥
SR No.010312
Book TitleJain Swadhyaya Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh Sailana MP
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1965
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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