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________________ २२० उत्तराध्ययन सूत्र अ ३६ वण्णयो जे भवे किण्हे, भइए से उ गधयो। रसग्रो फासो चेव, भइए सठाणो वि य ।२३। वण्णग्रो जे भवे नीले, भइए से उ गंधयो। रसग्रो फासयो चेव, भइए संठाणयो वि य ।२४। वण्णयो लोहिए जे उ, भइए से उ गधग्रो । रसग्रो फामग्रो चेव, भइए सठाणो वि य ।२५॥ वण्णो पीयए जे उ, भइए से उ गंधयो। रसग्रो फासओ चेव, भइए सठाणयो वि य ।२६। वण्णयो सुविकले जे उ, भइए से उ गधनो। रसओ फासयो चेव, भइए सठाणो वि य ।२७। गंधयो जे भवे सुभी, भइए से उ, वण्णयो। रसग्रो फासयो चेव, भइए संठाणो वि य ।२८। गंधयो जे भवे दुव्भी, भइए से उ वण्णो । रसग्रो फासयो चेव, भइए सठाणयो वि य ।२६॥ रसो तित्तए जे उ, भइए से उ वण्णयो। गंधयो फासयो चेव, भइए सठाणयो वि य ।३०। रसो कडुए जे उ, भइए से उ वणयो । गधग्रो फासयो चेव, भइए सठाणो वि य।३१॥ रसो कसाए जे उ, भइए से उ वण्णो । गंधयो फासयो चेव, भइए संठाणो वि य ।३२। रसग्रो अम्विले जे उ, भइए से उ वण्णो । गंधग्रो फासओ चेव, भइए सठाणनो वि य ।३३। रसो महुरए जे उ, भइए से उ वण्णप्रो।
SR No.010312
Book TitleJain Swadhyaya Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh Sailana MP
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1965
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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