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________________ १२२ उत्तराध्ययन सूत्र अ. १६ गिहिणो जे पव्वइएण दिट्ठा, अपव्वइएण व संथुया हविज्जा । तेसि इहलोइय-फलट्ठा, जो संथवं न करेइ स भिक्खू ।१०। सयणा-सण-पाण-भोयणं, विविहं खाइम-साइम परेसिं । अदए पडिसेहिए नियण्ठे, जे तत्थ न पउस्सई स भिक्ख ॥११॥ जं किंचि आहार-पाणगं विविहं, खाइम-साइम परेसिं लद्ध । जो तं तिविहेण नाणुकम्पे, मण-वय-काय-सुसंवुडे स भिक्खू ॥१२॥ प्रायामगं चेव जवोदणं च, सीय सोवीरजवोदगं च । न हीलए पिण्ड नीरसं तु, पंतकुलाई परिव्वए स भिक्खू ।१३। सद्दा विविहा भवंति लोए, दिब्बा माणुस्सगा तहा तिरिच्छा । भीमा भय-भेरवा उराला,जो सोच्चा न विहिज्जई स भिक्खू ।१४। वादं विविहं समिच्च लोए, सहिए खेयाणुगए य कोवियप्पा । पन्ने अभिभूय सव्वदंसी, उवसंते अविहेडए स भिक्खू ।१५। असिप्पजीवी अगिहे अमित्ते, जिइंदिए सव्वो विप्पमुक्के ।। अणुक्कसाई लहुअप्पभक्खी, चिच्चा गिहं एगचरे स भिक्खू ।१६। ॥सभिक्खुय पंचदह अज्झयणं समत्त ॥१॥ ॥ बम्भचेरसमाहिठाण णाम अज्झयणं ॥१६॥ सुयं मे आउसं तेणं भगवया एवमक्खायं इह खलु थेरेहि भगवंतेहिं दस बम्भचेर-समाहिठाणा पन्नत्ता, जे भिक्खू सोच्चा निसम्म सजमबहुले सवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गुत्तिदिए गुत्तबभयारी सया अप्पमत्ते विहरेज्जा कयरे खल ते थेरेहिं भगवतेहि दस वम्भचेरसमाहिठाणा पन्नता, जे भिक्खू सोच्चा निसम्म संजमवहुले संवरबहुले समाहिवहुले गुत्ते गुर्ति दिए गुत्तबम्भयारी
SR No.010312
Book TitleJain Swadhyaya Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh Sailana MP
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1965
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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