SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ .. जैन सुबोध गुटका । ( ३६ ) थावेजी । व भूख प्यास विसराई ॥ १ ॥ दस बीस दिनों की आशा फिर करसी प्राण विनाशाजी । यह देर पड़े } हुण माँई ।। २ ।। तरस्यो नीर पे जावे; गरजी निज गरज { 1 वेजी | दुखिया के धीरज नांई ॥ ३ ॥ सुग्रीव अलगरज रहावे, मतलबी जगत कहावेजी । या चौथमल दर साई ॥ ४ ॥ ५६ श्रीराम से लक्ष्मण का कहना : ( दर्ज - बनजारा ) सुन लखन उठे जोश खाई, लिया धनुष बाण कर माई || टर || ऐसा क्रोध बदन में छाया, 'पृथ्वी परवत थरायाजी | कहे सुग्रीव पां श्रयी ॥ प्रभु तरु तले कष्ट उठावे, तु महलों में मोज उड़ावेजी । थने तनिक लाज नहीं आयी || २ || वर्ष समान दिन जाने, छे गुणी रेन हाजी | सोबती है तुझ मांई ॥ ३ ॥ रोगी दवा वैद्य से खावे, हो निरोग उसे विसरावेजी । अत्र लो खुद वचन निभाई ॥ ४ ॥ नहीं तो शाहा शक्ति की नाइ, दूं परलोक पहुंचाईजी | पड़े सुग्रीव चरण के मांई ॥ ५ ॥ फिर ये जहाँ रघुराई, कहे शोध करां अब जाईजी | ये ऐसी चौथमल गाई ॥ ६ ॥ || ५७ सीता से विभीक्षण का कहना ( तर्ज - बनजारा ) पूछे विमीक्षण हितकारी, तुम कौन पुरुष की नारी
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy