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________________ ...३४) 1. जैन सुवोध गुटका । मोक्ष सुख आगे तैयार ॥ ५॥ पूज्य मन्नालालजी बीज का चंद । चौथमल कहे सदा वरते आनंद ।। ६ ॥ . ४६ कटुक वाक्य निषेध. (तर्ज-पनजी मुंडे बोल ) _ छोड़ अज्ञानीरे २ यह कटुक वचन समझावे ज्ञानीरे ॥ टेर ॥ कटुक वचन द्रौपदी बोली, लौरव ने जब तानीरे। भरी सभा खंचे चीर, या प्रकट कहानीरे ॥ १॥ कटु वचन नारदने चोली, देखो भामाराणीरे हरिको रुखमण से व्याव हुओ, वा ऊपर प्राणी ॥२॥ ऐवंता ऋपिने कटु कह्यो या, कंश तणी पटराणीरे । ज्ञान देख मुनि कथन करयो, पिछे पछताणीरे ॥ ३ ॥ वधु सासुने कटु कहो, हुई चार जीव की हानीरे। कटु वचन से टूटे प्रेम, लीजो पहेचानीरे ॥४॥ थोड़ो जीनो क्यों कांटा वीणो, मति वेर बसानो प्राणीरे । गुरुप्रसादे चौथमल कहे, बोलो निर्वद्य वाणीरे । ॥ ५ ॥ ५० झूठा स्नेह, . . (तर्ज-बाशावरी) पंछी काहे को प्रीत. लगावे, काहेको प्रीत लगावे । पंछी काहेको प्रीत लगावे ॥ देर ॥ यह संसार मुसाफिर खाना आत जात रहावे । प्रात हुए भानु जन निकसे, निज २ रस्ते सिधाचे ॥ १॥ जैसे वृक्ष पे. रवि अस्त भये, पक्षी वासो लहावे । दिन नहीं उगे जहां लग चेतन, आखिर
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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