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________________ (३१६.) . जैन-सुवोध गुटका । narammarrrrrrrrrrrnm.inmamimirromanmnrammarma . त्रिकाल तीनों जगत् । हस्ताम्ल ज्यू. दरसायगा. ॥ यही चौथमल का जितलाना तुझे ॥ ४॥ नस्वर ४२८ । (तर्ज--पूर्ववत्) सखी वात पर क्यों नहीं ध्यान धरे । पिया मिलने . की क्यों न तैयारी करे ॥ टेर ॥ दिन चार पियर वीच में आखिर तूं रहने पायगी । याद रख सुसराल में फिर अंत ही तूं जायगी, मत मिथ्या मोह के बीच परे ॥ १॥ ज्ञान जल स स्नान कर, अघमेल तज दीजियो । शील का शृंगार तन, अच्छी तरह सज लीजियो । पूरी करके सजावट पहुंच घरे ॥२॥ तेरेसे भी अधिक गुण में, पिया के कई जानियों । यौवन की मद माती बनी, अभिमान तूं . मत प्रानियो । बिना पिया के क्यों तूं भटकती फिरे ॥३॥ . करके निगाह तूं देखले, चिन पिया सुख कच पायगा । कहे. चौथमल यू मुफ्त तेरा, जन्म सारा जायगा ! शुद्ध ध्यान पिया का धरे सो तिरे ॥४॥ नम्बर ४२६ [ तर्ज-पूर्ववत् । . .क.मी. ल.तमाखू तुम पीजो, मती पीने वालों को।
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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