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________________ • जैन सुवोध गुटका। (३१३) PnAmAhhoh मेघरथ राजा ने । सब जीवों की तुम करी दया, सिखला दिया मेघरथ राजा ने ॥ टेर ॥ बाज़-फाक्ता पन करके सुर, आये परीक्षा काज वहां । गिर गया फाक्ता गोदी में, अपना लिया मेघरथ राजा ने ॥ १॥ कहे चाज यो नृपति'से, देदो यह मेरा भक्ष मुझे । नहीं देंगे इसको हम हरगिज; फरमा दिया मेघरथ राजा ने ॥ २॥ गिरिछुआरे मेवादिक, खाने की चीज़ हैं कई। देंगे "तुझको ' मांग वही, जितला दिया मेघरथ राजा ने ॥ ३॥ अगर • बचाना चाहत हो, निज तन का देदो मांस मुझे । सुनकर के फौरन आप छुग, मंगवा लिया मेघरथ राजा ने ॥४॥ सजनम्नही मिल कर के, कहे हाथ जोड़ यों, भूपति से। करते हो गजब क्यों स्वामी जव, समझा दिया मेघरथ राजा ने ॥ ५ ॥ कर दीना तन नृपति अर्पण,परहित करन सत् धारीने । नहीं चला धर्म से, पक्षी को बचवा दिया मेघरथ राजा ने ॥ ६॥ हो प्रकट देव कहे स्वामी की, कीनी प्रशंसा इन्द्रःने । निजे मुख से फिर धन्यवाद देव, दीना है मेघरथ राजा ने || ७॥ साल सित्यासी नगर बीच कहे, चौथमल श्रोता सुनियो। बनके तीर्थकर करुणा, रस, वरसा दिया मेघरथ राजा ने ॥८॥ - re नम्बर ४२५ . (तर्ज-मेरे स्वामी वुलालो मुगत में मुझे) प्रभु-ध्यान से दिलको हटावो मती । दुनियां-दारी
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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