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________________ : . . ""cs (२७२) जैन सुबोध गुटका । manumminmuramiranom होसी घणो, जो नहीं प्रबन्ध करायोजी ॥ २५ ॥ की अजी या पेश आपसे, समय देख लिखलायोजी । जज समान जनता ने सोच, कोई हुक्म लगाये.जी ।। २६ ॥ गुरु प्रसाद चौथमल, यो छन्द बना कर गायोजी । जाति, प्रेमी, देश हितेच्छ के मन भायोजी ॥ २७ ॥ .. . . . . .aaane: - . ३७३ पहले सोचें. (तर्ज- यह क्यों बाल विखर है ) उलझ जाते जो बेढंग से, वही नर फेो.रोते हैं । नहीं. श्राराम पाते हैं, उमर फिजूल खोते हैं ।। टेर ॥ काम करने के पहले. ही, सोचं अंजाम जो लेते । नहीं तकलीफ वो पाते, सुखों निन्द सोते हैं । १॥ बिना सोचा किया रावण, गई जब लंक हाथों से । डुंबर ललितांग भी फंसके फेर गमखुवार होते हैं ॥ २॥ दिवाना इश्क का उनके नफा किसने उठाया है । काट के सुरतरु कर से, देखो यह श्राक बोते हैं ॥ ३ ॥ अलि पुष्पों में उलझा है, मच्छी कांटे से जा उलझी । चौथमल कहे मुनो सजन, खास कर्तव.. के गोते हैं ॥ ४॥ . . ३७४ पापों के फल. (तर्ज-लाखों पापी तिरगये सत्संग के परताप से). . कहां लिखा तूं दे बता, जालिम सजा नहीं पायगा ।
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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