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________________ जैन बोध गुटका। (२७१) man जन्म बितायाजी। गई स्वर्ग के बीच धर्मे जो, पूर्ण निभायोजी ॥ १४ ॥ कई नारी व्यभिचार कर्म कर, विधवा धर्म गमायोजी ! पाप आय जब उदय हुवो, तब हमल रहायोजी ॥ १५॥ वात हुई प्रगट पंचा मिल, नौतो बन्ध करायोजी गर्भपात जनकरियो, जाति बकवाद मिटायोजी ॥ १६ ॥ गर्भपात नहीं हुवो तात, तीर्थ को मिश ठहरायोजी । लेई सुना को साथ श्राप, परदेश सिधायोजी ॥ १७ ॥ औषध किया नहीं गर्म पड़यो जो, पूर्ण आयु ले प्रायोजी। घबराय तात सुता को छांद, निज घर पर आयोजी ॥ १८ ॥ ढूंढे पाप को बेटी स्टेशन पर, कहीं पतो नहीं पायोजी । राव वृक्ष तल बैठ, राम आछो करवायोजी ॥ १६ ॥ इतने में एक अधम जाति नर, विश्वासी घर लायांजी । मांसाहारी पापी ने मांस को, आहार करायोजी ॥ २० ॥ मुण्डो पकड़ जबरन से पापी, फर शराब पिलायोजी । विगल्या मांही गया बिगड, बाकी न रहायोजो ॥ २१ ॥ कई गर्भवती विधवा को, घर का जहर पिलायोजी । कई विधवा को जाति वहार कर, अनर्थ करवायोजी ॥ २२ ॥ ऐसी जान वृद्ध विवाह करो बन्ध, जो जन निज हित चायाजी। बाल लग्न भी बुरो जगत के, बीच चलायोजी ॥ २३ ॥ छोटी उमर में सुता सुत को, नष्ट वीर्य करवायोजी । कलि कुमलाय जूं उन वालों ने, प्राण गमायोजी-॥.२४॥ विन वर जोड़ी व्याव करो मत, यो भी थांने चेतायोजी । अनर्थ
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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