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________________ बन मुऔष जपा, हो माहिया कानी पर घाग्रीन हनी धानाने योग से. हो सादिया, पूरा दृश्या फनीत | अ ॥ ४॥ पर नारी रत मानवी हो साहित्र, जातिमाये बहार । बाल घात होती धनी, हो मादिया जाये न वार || रा ॥ ॥५॥ मोटा कुन का कान्या, हो माहिया नानो गाल विचार । पर नारी माता गिनो, हो माहिया शोमा हा संसार ।। ज० ॥ ६॥ उन्नीसे इमामी साल में, हो साहित्रा प्राया सेग्मे काल | गुरु का कोई चयन न हो साहिया, या मदारिया में नाल ॥ई० ॥ ॥ ३४४ अमोल बड़ी. (सर्ज-पिती राजीय EER चमी चनार ने न सिी मनोज पढ़ी । कहाँ सुगुरु लगाई जान सी. काही मिनि कोमर सांगलोरे, गोमार तार र विमन जानन लागे वार 1000 उस नर, घा में चलियो जाप माया कागल होगीर, पन में पिनमो जाय ॥ चनो० ॥ २॥ गा इन गुना कर पाखिर यादलाय मे यूसानो पार दिन काका यादा जाध ॥ 31ोगा माता वा की, मोगा मा नाद । फास मिगे मारे
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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