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________________ (२३६) जन सुबोध गुटका । ‘दो छोड़। उत्तम को नहीं पीना, कुल में लगे है खोड़ । 'लगे इश्क फिर पछताओगे । मत० ॥ ३ ॥ लगात रगड़ा भंग का, रहते नशे में गर्क । बिगड़े हैं कई साहकार इसमें नजरां फर्क । अति भोजन कर रोग बढ़ानोगे ।। मत० ॥ ४॥ छोटे मोटे आदमी, कैसे हुए निडर । सिगरेट को पीते शोक स. शुद्ध अशुद्ध की नहीं खबर । क्या फायदा इस में उठावोगे | मत० ॥ ५॥ महुअा ओर कीडों का, शराब है अर्क। आंखों से खुद देखलो, करके ठकि तर्क। कम उम्र में जान गंवानोगे ।। मत० ॥ ६ ॥ अफीम का खाना खराव, बे वख्त नींद आय । कहे चौथमल नशे को तज, आराम गर तूं चाय । मेरी नसीहत पे ध्यान लगाागे ।। मत० ।। ७ ।। . . ३३१ भावी भविष्य. (तर्ज-पंजो की। सुमति जब अावेगा, सत्संग में तेरो जीव रमावेगा !! टंर ।। सुमति के आया विन प्रानी, लक्ष चौरासी गोता खावेगा। वार २ मनुष्य देह उत्तम, कब तुं पावेगा । सुमति ॥ १ ॥ बालपना गया आई जवानी, यह भी कल दल जावेगा। आगे बुढ़ापा बीच में, कुछ नहीं बन आवेगा ॥ सुमति ॥ २ ॥ खावे सो निवीज़ हुए, और लुणेगाजो
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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