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________________ म मुधो गुटकः। (२४) पलि बकुंट में जाना चावर ॥ प्राणिया ॥४॥ नौल माप में कम ज्यादा कराये। अच्छे के अंदर वोटा मिलाये। फिर जाली कागज बनावरे ॥ प्राणिया० ॥ ५॥ वर्ष अठारह की कन्या बना । देवे पांच हजार तो च्यावे, लौकिक लाज सभी विसगरे।। प्रागिया० ॥ ६॥ दोला से खजाना भरूंगा । चौगुना पाठ गुना तो कलंगा,, नहीं जाने के मैं भी महंगार ॥ प्राणिया० ॥७॥ सारा जन्म अमोलक खोया । खरा खोटा पंथ नहीं जोया । अब काई होवे जोर मु रोयारे ॥ प्राणिया० ॥८॥ पिना धर्म घणा पछतासो, जैसा किया वैसा फल पासो । मनुष्य जन्म में फेर कर आसारे । प्राणिया० ॥8॥ सेटस्वारामजी के बाग के मांही। चीथमल ने यह शिना मुनाई । कर धर्म जो सुधरे कमाईरे । प्राणिया०॥ १० ॥ ३३० नशा निपेय. त-दादरा मन कीजो नशा मुख पायोगे॥टेर ॥ तदानुसा पीना बुरा, पहिले मंगाती भीख । ऊंच नीन एका होग, रहती जरा न ठीक । हाथ मुंह में चदयू फैलायोग । मत ॥१॥ पीने से गांजा तन पर, रदना कमी न न फिर जाय रंग नेमका, गुस्मा चढ़े कदर । कमी पाने पागन हो जायोगे ।। मनः ॥ २॥ चरस और चंद को, घर में
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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