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________________ जैन सुवोध गुटका | ३०८ पाप से छुटका. (तर्ज- तरकारी तो मालन शहरे बीकानेर की ) (२६६) इस पाप कर्म से, किस विधहोसीरे थारो को || टेर || शिकार खेलतो फिरे रात दिन, रंच दवा नहीं लावे | बोले झूठ जहां पानी बतावे, कादो भी नहीं पाये || इस० ॥ १ ॥ चोरी करे हरे पर धन को नहीं खौफ राम को लावे | परनारी को रूप देख, धारी नीत भ्रष्ट होजावे || इस० || २ || करे परिग्रह संचय तूं तो करी क्रोध अभिमान | छल से छले लोभ के कारण सुने न शिक्षा कान || इस० || ३ || राग द्वेष के वश हो प्राणी, निय को कलह मचावे | तोमत घरे गैर के शिर पे, लुगली पर की खावे || इस० || ४ || पर अपवाद बड़े तूं निश दिन, हो धरम में राजी | रति धर्म में माया मृपा, बने मिथ्यात में माजी || इस० ॥ ५ ॥ सुन्दर रसोई बनाके भाई, जैसे जहर मिलावे | जिसे बाद परगमें तन में, फेल वही पछतावे || इस० || ६ || मारवाड़ में शहर सादी, साल कपास यावे | गुरु प्रसादे चौथमल कड़े पाप, बजे तिर जाये || इस० ॥ ७ ॥ Sar ३०६ यहीं की सप पाते. ( तर्ज पर नयोस ) यांदी की यांदी की बातें करे सब आगे का करने
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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