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________________ जन गुबोध गुटका। (२०३) LA-AA- . AAAAream - - - ठिकाना ॥टेर || जिया दम आवे या नहीं पार, उट चला एकदम जावेजी, ना रहत किसीका रखांना ।। इस ॥ ॥१॥ गुलबदन देख घुमरावे, तू अत्तर फुलल लगावेजी टेडी पगड़ी बांध अकड़ाना इस ॥ २ ॥ गृनि हितकर बचन सुनावे, तूं जरा खौफ नहीं लायेसी, रहे कुटुम्ब बीच लिपटाना ।। इस० ॥ ॥ देखो होरा काभन मोती, सन् मुख कई अबला जोतीजी, सन घरा रहत खजाना || He ॥४॥ जिया जैसे मिट्टी का मटका, जब तक नहीं लगता ठपकाजी, तेरे भरना होसो भराना ।। इस० ॥ ५॥ मुनि चौथमल का कहना, जिया नाम प्रभु का लेनाजी, मत पुद्गल में ललचाना ।। इस० ॥६॥ २६० लोभ जवर. ' (तदादरा) लोभ जबर जगत में समको डुबो दिया। मात तान पुत्र का, नावा तुड़ा दिया ।। टेर ॥ इस लोभ की लगन में, कुछ सूझता नहीं । निजदेश छोड़ के कई, पादेश में गया । लोम० ॥१॥ करते हैं कई चाकरी, हथियार बांध के । बड़े बड़े समीर को, गुलाम कर दिया। लोग० ॥२॥ लोम से वो कोध होय, क्रोध से फिर द्रोह । द्रोह से ठी नर्क होग, शास में फया । लोम० ॥ ३॥ हो राज में
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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