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________________ ( २०२ ) जैन सुबोध गुटका | भगवान कहे वह मोक्ष सिधांव ए ॥ रसना ॥ १० ॥ श्रसत्य और मिश्र भाषा, वीर प्रभु ने वरजी ए । चौथमल कहे सत्य व्यवहार भाषे मुनिवरजी ए ॥ रसना० - ॥ ११ ॥ २८८ शिक्षा. ( तर्ज - दादरा ) इस हराम काम बीच नफा क्या उठायगा, बदनामी के सिवाय और क्या ले जायगा || देर || नहीं वसीला वहां तेरा, जरा दिल में सोचले ! करले जो वन्दोवस्त तो बरी हो जायगा | इस ॥ १ ॥ जिसको सताया तैने वहां वो सतायगा । जिसको जलाया तेने यहां, वहां वो जलायगा । इस ॥ २ ॥ जिसको फँसाया तेने यहां, वो वहां नायगा । जिसको दबाया तैन यहां, वहां वो दवायेगा || इस || ३ || जिसको रुलाया चैन यहां वो वहां रुलायगा । जिसका दुखाया दिल यहाँ, वो वहां दुखायेगा || इम० ॥ ४ ॥ दिन चार की हैं चांदनी, फिर वोही रात हैं । किया जो काम * नेक बंद, वो पेश आयगा | इस० ॥ ५ ॥ खोलकर • दृष्टि जरा, मेरी बात को सुनो। ये चौथमल हरवार - कब, कहने को आयगा ॥ इस० ॥ ६ ॥ २८६ गफलत छोड़ (तर्ज- बनजारा :: क्यों गफलत में रहत दिवानाः । इस तन का क्या है •
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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