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________________ (१७०). जैन. सुबोध गुटका । माफी मांगी विप्र ने, लिया मुनि ने आहार जी । अशर्फी जल पुष्प बरसे, हुई दुंदुभी ललकारजी। मिलत] धन्य धन्य धन्य कहे विप्र, फिर गये मोक्ष केवल ल ज्ञान ॥२॥ अर्जुनमाली विदुषमति संग, पहुंचे यक्ष मंदिर दरम्यान । छ शख्शों ने करी अनीति, नारी से जब वहां पर आन । दैव योग से.माली ने उन . सातों के लिए लूट प्रानं । आस पास वो फिरे पधारे, उसी वक्त वहांपर वर्धमान । .: शेर.... । गया सेठ सुदर्शन दर्श को, माली मिला बीच आनजी । जोर चला नहीं सेठो, गया देव निकल निज स्थानजी ।। सेठ संग उस मालीने, भेटे श्री भगवान जी । : ज्ञान सुन संयम लिया, तपस्या करीप्रधानजी ।। [मिलत] अन्तगढ़ में हुआ केवली सुनो भाविक जन . घर के ध्यान ॥ ३॥ ::.....:.; सकडाल नामा प्रजापति था, तीन कोड़ सोनया पास ! : दस सहन गौ दुकान पानसे, मानमति नारी थी खास। . गौशाले का था ये शिष्य, देव योग भाग हो गया.प्रकाश । वीर प्रभु का होगया श्रावक, व्रत धारी सद्गुणी की रास . सुनके गौशाला आगया, कई कदर समझायजी। मगर पक्का नहीं डिगा, दृढ़ रहा धर्म के मायजी ॥ .
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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