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________________ जैन सुबोध गुटका । (१६६) २५२ हर भजे सो हरका. (तर्ज-लाघनी बहर नदी) . . दया धर्म जो करे उसीका, श्री महावीर का यह फरमान । तप.संयम की महिमा जैन में, नहीं जाति का कोई अरमान ।। टेर | राज वंश में प्रगट हुए, श्री तारण तरण चौबीस भगवान । जैसे अंधकार मेटन को, सुबह प्रगट होता है मान । चक्रवर्ती छ खण्ड के नायक, एक छत्र धारी थे महान तिज कंचनके महल पधारे, बनके बीच लगाया ध्यान।। हरि हलधर महा पली, श्रेणिक जैसे भूपति । । जैन धर्म धारण किया, शास्त्र में महिमा की । राजा और युवराज कई, सेट और सेनापति । तप संयम धारण करी, गये स्वर्ग कई शिव गति ।। [मिलत] तप संयम ने भगु पुरोहित, जेथोप विप्र का किया कल्याण ।। तप संयम० ॥१॥ पैदा हुए चंडाल के कुल में, हरकैसी कुरूप प्राकार, तप संयम को किया आराधन, उत्तराध्येन में है अधिकार । तिदुक वृक्ष का यत मुनि की, सेवा में रहता हरवार । मासखमन का भाया पारना, यज्ञ बीच गये लेने थाहार ।। शर. ‘विप्र देख मुनिको, करने लगे तिरस्कार जी । राज सुता परजे नमाने किया विन सुर उप वारजी।
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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