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________________ जैन सुबोध गुटका | ( १४३ ) को वस्त्र न पूरा, दुख को छेह न पार ॥ ७ ॥ शूरवीर राजा तुम्हें, कहे रानी जोड़ी हाथ । श्रत्र तो सत्य दृड़ राखजो, कलियुग रहसी बात ॥ ८ ॥ तारा वचन कान सुनी, राजा सन हुलसाय | चौथमल कहे एक वचन में चिंता तुरत. मिटाय ॥ ६ ॥ २१६ मान्यता. (तर्ज- तू ही तू ही याद आवेरे दरद में ) 1 २ ॥ 1 ३ ॥ t ४ ॥ माना हुआ है. सुख तेरा ॥ टेर ॥ प्रथम तन से फीतो पो मोह माया ने फिर दिया घेरा || माना० ॥ १ ॥ मात पिता और राखन हारा, चक्री भमर गेंद करे मेरा ॥ भणि गुणी ने लग्न करीने, प्रेम बढावे रमणी. के. लेरा ॥ नीति कर्तव्य अपना बिसारा, जिम तिम कर रहा पैसा मेरा ॥ बेटा बेटी पोता दोहिता, होगया अवतो कुटुम्ब घनेरा ॥ यह धन म्हारो यह पर म्हारो, हिस्सादार से करे बिखेड़ा ॥ कोर्ट में अब फिरे खड़तो, इधर जराने दिना घेरा ॥ लहे तरुणता ममता दिन दिन, नहीं होथ करे फिकर घनेरा ॥ परभव साथ चला नहीं कोई, छोड़ चला बनजारा डेरा ॥ गुरु प्रसादे चौथमल कहवे । लेटर चला संग पुण्य पाप केरा ॥ ५ ॥ ६ ॥ ७ ॥ = ॥ ६ ॥ १० ॥ ·
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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