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________________ जैन सुबोध गुटका ( १३३ ) खाई हवा हो सुन्दरी || ७ || मानी मोजां खूबरे कोई, पट्रस भोजन भोगव्या हो सुन्दरी ॥ ८ ॥ मानी न सद्गुरु सीखरे कोई योवन छक व्याप्यो घणो हो सुन्दरी || ६ || वाज्या नकारा कूंचकारे कोई, विद्यतावो है खरो हो सुन्दरी ॥ १० ॥ हंसजी i धर्म करो त्रिकालरे कोई, में करती श्राड़ी नहीं फिरी हो हंसजी ॥ ११ ॥ जो तुम तजदो मोयरे कोई, साथे मैं थासुं सती हो हंसजी ॥ १२ ॥ चौथमल ऐसे कहे कोई धर्म सखा परलोक में हो हंसजी ॥ १३ ॥ 49 २०५ प्रभु से विनंति, (तर्ज-ठुमरी ) अतो नहीं छोड़ांगा प्रभु धांने ॥ ढेर || चोसारी लख भटकत आयो, श्राप मिल्या नीठ माने || अवे० ॥ १ ॥ जिम तिम करने शिव सुख दीजो, चोड़े कहूं के छाने || २ || मन विना म्हारो मन हर लीनो, शाशनपति वृद्धमाने ॥ ३ ॥ तरण तारण विश्व तिहारो, तीन लोक में जाने ॥ ४ ॥ चौथमल धारे शरणे आयो, तारो २ प्रभु माने ॥ ५ ॥ ? • २०६ फूट परिणाम, ( तर्ज-- दिलजान से फिश हूं ) इस फूट ने बिगाड़ा, मिटे फूट हो सुधारा ॥ टेर || देखो भाई २ झगड़े, कोरट के बीच रगड़े। अभिमान बीच अफ
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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