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________________ जैन सुबोध गुटका । (१३१) namannaamaamanamamiminarainemamaramnaamanamurde ईसाई बढ़े हैं, डूबे यह देश तुम्हारारे ॥ ४॥ विद्या पढ़ायो शास्त्र सिखायो, देओ एक दूजे को सहारारे ॥ ५ ॥ चौथमल कहे अब भी चतो, झटपट करो सुधारारे ॥ ६॥ २०२ फूट का दुष्फल.. "त::विना रघुनाथ के देखे नहीं दिल को करारी है] उठो बादर मिटाओ फूट, ये शिक्षा हमारी है।।.सम्प में फायदे हैं बहुत, फेर मर्जी तुम्हारी है ॥ टेर ॥ प्यारे मित्र ये सारे, तुम्हारे नैन के तारे । सभी दिल खींच पेठे क्यों, जरा यह भी विचारी है। उठो० ॥१॥चली अवतानाबाजी हैं, घने खुद मुल्ला काजी हैं । एक की एक नहीं माने, इसी सें गैरत भारी है ॥२॥ पढ़े लिखे की तबीयत पे, गजब छाई खराबी है । लड़े आपस में दुनियों तो, उन्हें देती धिकारी है ॥३॥ अलगरज होय के ड्वे, चाहें अपनी बड़ाई को। स्वारथ के ही लिये सबसे, भली तुमने विगाड़ी है ॥ ४ ॥ मुलामी धार के सय को, निगाह प्यारी से देखो श्राप ! तोड़ हो यूद, रसूमो को, पढ़े, इजत तुम्हारी है. ॥५॥ आप के सामने अब आज, कहो दम मारता है कौन । वनों संघ दुध मिश्री सम, यहीं तुमको हितकारी है ॥ ६॥ पड़ी जब फूट रावण घर गई जब लंका हाथों से। सम्प ले राम भरत अन्दर रही, मोहव्यत हजारी है,॥ ७॥ गुरु हीरालाल के परसाद, चौथमल कहे सुनो.लोगों । करो तुम सम्प जल्दी से, तो रदंती. यात सारी ॥ .. -Stoxs.
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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