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________________ जैन सुबोध गुटका। (१०३) जरा देखो नेन पसारीरे ॥ ६॥ हाथ जोड़ तेरे पांव पढ़त हं, तुम कीजो दया हमारीरे।। ७ ।। गौ कन्या पे प्राहार उठा है। जव से यह भारत दुख्यारीरे ।। ८ । चौथमल की सीख श्रवणं कर. तुम दीजो कुरीति निवारी ।। १५६ प्रभुः ध्यान, तर्ज-रेखता). . लगाओ ध्यान प्रभु जिनका, जीना दुनियां में दो दिनका . ॥टेर ॥ उमर जाती है चली, चश्म खोल देखलो अली। भरोसा क्या जिंदगानीका, जीना दुनियां में दो दिनका ॥ जीना० ॥१॥ गफलत में होके मत सोवो, इस कुनबे में क्यों मोयो । नहीं कोई साथ उस दिन का ॥ २॥ जर जेवर खजाना देख, गुल बदन देखके मत वैख । बुलबुला जैसे पानी फा ॥ ३ ॥ जाना है तुझे जरूरी, क्यों सतावे है कर गलरी। इशारा लेगा किन २ का ॥८॥चौथमल कहे सुनो प्यारे,भज निरंजन निराकारे । भला जो चाहे गर दिल का ॥५॥ १६० सट्टे का परिणाम. (तर्ज-मेरे काजी साहब अाज सवक नहीं याद हुआ) मत कीजो सट्टा २ उजावे शिर के चोटी पट्टा, मत कीजो सट्टा, कई की इज्जत में लग गया वहा ॥ टेर॥ सट्टेवाज की कई हकीकत,जो कोई उसमें फमावे। फिर तो ऐसा इश्क लगे, सब घर का धन लगावे ॥ मत०॥१॥रात दिन चिन्ता रहे घट में, नेन नींद नहीं आवे । जो थोड़ी सी आंख लगे तो, सपने में दिखलावे ॥२॥ कहे सेठानी सुनो सेठजी, यह है
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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