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________________ "पनाम-प्रमाण ३५२ ३-नय अधिकार में ज्ञान ज्ञेय के विकल्प होने के कारण सद्भ त, ऐसे दोनों प्रकार : का साधन साध्य भाव समझना। १२०. सम्यकचारित्र में निश्चय व्यवहार साध्य साधन भाव दिखाओ। यद्यपि सम्यक्चारित्र के विषयभ त साम्यता या आत्मस्थिरता में व्रतादि के कोई विकल्पात्मक भेद नहीं हैं, फिर भी भेद किये बिना उसका समझना या समझाना अथवा साक्षात प्राप्त करना अशक्य होने से साधक को अपनी प्रारम्भिक भ मिका में वैराग्य वृद्धि तथा वासना क्षति के अर्थ व्रतादि धारण करने पड़ते . ही हैं, क्योंकि ऐसा करने से क्रम पूर्वक आगे जाकर सम्पूर्ण वि.. कल्प शान्त हो जाने पर बस वह परम साम्य रूप स्वतः उछलने लगता है । इसलिये तहां भी व्यवहार सम्यक्चारित्र साधन है और निश्चय सम्यक्चारित्र साध्य है। यहां भी यथायोग्य सद्भूत व असद्भूत दोनों प्रकार का साधन साध्य भाव जानना। १२१. प्रत में निश्चय व्यवहार साध्य साधन भाव दिखाओ। यद्यपि व्रत की विषयभ त विरक्ति भाव में पदार्थों के ग्रहण त्याग आदि के कोई विकल्पात्मक भेद नहीं हैं, फिर भी भेद .. - किये बिना उसका कथन करना तथा समझना समझाना अथवा साक्षात ग्रहण करना शक्य न होने से, साधक को अपनी प्रारम्भिक भूमिकाओं में बुद्धिपूर्वक विषयों का त्याग करना '.. पड़ता ही है, क्योंकि ऐसा करने से क्रमपूर्वक आगे जाकर :: .. कदाचित वह भीतरी विरक्ति भाव जागृत हो जाता है इसलिये । यहां भी व्यवहार व्रत साधन है और निश्चय व्रत साध्य । यहां भी यथायोग्य सद्भूत व असद्भूत दोनों प्रकार का साधन । ... साव्य भाव समझना ।। , १६. तप में निश्चय व्यवहार साध्य साधन भाव दिखाओ। ... यद्यपि तप के विषयभू त आत्म प्रतपम में अनशन आदि के विकल्प रूप भेद नहीं हैं फिर भी उसका कथन करना तथा
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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