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________________ ८-मय-प्रमाण ३-नय अधिकार केवल समान लिंग व वचन आदि वाले शब्दों को ही एकार्थवाची मानता है, भिन्न लिंगादि वालों को नहीं । ५८. समभिरूढनय किसको कहते हैं ? । शब्द नय द्वारा ग्रहण किये गये समान लिंगादि वाले शब्दों का भी जो पृथक-पृथक अर्थ ग्रहण करता है, वह समभिरूढनय है। इस नय में एकार्थवाची शब्द नहीं होते। परन्तु एक अर्थ के लिये सर्वदा एक ही प्रसिद्ध शब्द का प्रयोग किया जाता है । जैसे गाय को हर अवस्था में गाय कहना। ५६. एवंभूतनय किसको कहते हैं ? समभिरूढ़ नय के द्वारा ग्रहण किये गये अर्थ या पदार्थ को भी क्रिया की अपेक्षा लेकर भिन्न-भिन्न समयों में नाम देता है। जैसे-चलती हुई गाय को 'गाय' कहना बैठी हुई को नहीं। ६०. जब सभी नय शब्दों द्वारा व्यक्त की जाती है, फिर ऋजुसूत्र को अर्थनय और शब्दादि को व्यंजननय क्यों कहा? नयें तो सभी की सभी शब्दों द्वारा ही व्यक्त की जाती हैं, परन्तु इस अपेक्षा नयों का भेद नहीं किया गया है। बल्कि शब्द का लक्ष्य किस ओर है इस अपेक्षा को लेकर किया गया है। ऋजु सूत्र नय तक प्रयोग किये गये शब्दों का लक्ष्य 'वाच्यपदार्थ' के सम्बन्ध में तर्क वितर्क करना है, और तीनों व्यञ्जन नयों में प्रयुक्त शब्दों का लक्ष्य, वाच्य पदार्थ का वाचक जो नाम या शब्द है, उसके सम्बन्ध में तर्क वितर्क करना है। अतः ऋजुसूत्र पर्यन्त की सब नये अर्थ नयें हैं और आगे की तीन व्यञ्जन नयें। ". इन सातों नयों का क्रम समझाओ। - यह सात नये पदार्थ को स्थल से सूक्ष्मतम रूप तक पढ़ना सिखाते हैं । अतः इनका क्रम स्थूल से सूक्ष्म, सूक्ष्मतर व सूक्ष्मतम होता जाता है । नैगमनय का विषय सबसे महान है । संग्रहनय .का विषय नैगमनय से अल्प है, परन्तु आगे वाले सभी नयों से महान है। व्यवहार नय का विषय संग्रहनय से भी अल्प है,
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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