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________________ ८-नय-प्रमाण ३३४ ३-नय अधिकार (क) संकल्प मात्र ग्राही वैगमनय है । जैसे—भात पकाने का संकल्प करने पर ही चावलों को 'भात पकाता हूँ' ऐसा कहा जाता है। यह लक्षण ज्ञान नय की ओर से है, क्योंकि 'भात' नामक पदार्थ अनुत्पन्न होने के कारण बाहर में असत् है । उसका ग्रहण ज्ञान में ही हो रहा है। (ख) जो संग्रह व व्यवहार दोनों नयों के विषय को मुख्य गौण करके युगपत ग्रहण करे वह नैगम नय है। जैसेजो यह वस्तु समूह संग्रह नय की अपेक्षा एक जाति रूप है वही व्यवहार नय की अपेक्षा जीव अजीवादि अनेक जाति रूप है। यह लक्षण अर्थ नय की तरफ से है, क्योंकि सामान्य विशेष होने से उसी में एकता अनेकता सिद्ध होती हैं। (ग) जो एक को ग्रहण करके दोनों को अर्थात सामान्यांश व विशेषांश दोनों को मुख्य गौण करके ग्रहण करे उसको नैगम नय कहते हैं। जैसे जो यह द्रव्य गुण पर्याय की अपेक्षा अनेक भेद रूप कहा गया है वह अखण्ड एक ३३. नेगम नय व प्रमाण दोनों ही सामान्य व विशेष को युगपत ग्रहण करते हैं, तब दोनों में क्या अन्तर ? नैगम नय दोनों अंशों को मुख्य गौण के विकल्प पूर्वक ग्रहण करता है अथवा जानता है। जबकि प्रमाण उन्हें ही निर्विकल्प रूप से जानता है । इसलिये नैगमनय वक्तव्य है और प्रमाण अवक्तव्य । ३४. ज्ञान रूप नैगमनय कितने प्रकार का है ? तीन प्रकार का-भूत नैगम, वर्तमान नैगम, भावी नैगम । ३५. भूत नैगमनय किसको कहते हैं ? भतकाल में बीत गए विषय का वर्तमान में संकल्प करना भूत
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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