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________________ ७- स्याद्वाद २६६ १ - वस्तु स्वरूपाधिकार २६. द्रव्य गुण व पर्याय में इस चतुष्टय का क्या स्थान है ? द्रव्य में क्षेत्र प्रधान है, क्योंकि वह आश्रय या आधार है । गुण में भाव प्रधान है, क्योंकि वह उसका स्वभाव है । पर्याय में काल प्रधान है, क्योंकि वह आगे पीछे उत्पन्न व नष्ट होती रहती है । ३०. स्व-चतुष्टय किस लिये बताये जाते हैं । पदार्थ में सामान्य व विशेष धर्मों की स्पष्ट प्रतिपत्ति के लिये । ३१. स्व चतुष्टय में परस्पर सामान्य विशेष बताओ ? (क) द्रव्य सामान्य है और क्षेत्र उसका विशेष क्योंकि उसमें क्षेत्रात्मक पर्याय या आकार की प्रधानता है । (ख) भाव सामान्य है और काल उसका विशेष क्योंकि गुणों में परिणमन रूप पर्यायों की प्रधानता है । अथवा (क) द्रव्य की अपेक्षा करने पर क्षेत्र काल व भाव इन तीनों में अर्थात प्रदेशों, गुणों व पर्यायों में 'अनुगत द्रव्य' सामान्य है और ये तीनों उसके विशेष 1 (ख) क्षेत्र की अपेक्षा करने पर अनेक प्रदेशों में अनुगत द्रव्य का अखण्ड आकार सामान्य है और प्रदेश उसके विशेष । (ग) काल की अपेक्षा करने पर अनेक द्रव्य पर्यायों में अनुगत द्रव्य का ध्रुवत्व सामान्य है और उत्पाद व्यय रूप वे द्रव्य पर्याय में उसके विशेष । (घ) भाव की अपेक्षा करने पर त्रिकाली अनेक अर्थपर्यायों में अनुगत गुण सामान्य है और वे अर्थपर्याय उसके विशेष । ३२. यदि चतुष्टय एकमेक तो इन्हें कहने की क्या आवश्यकता ? सर्वथा एक ही हो, सो बात नहीं है । इन चारों में अपने अपने स्वरूप की अपेक्षा भेद भी है।
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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