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________________ ६-तत्वार्थ १-नव पदार्थाधिकार ३२. भाव निर्जरा रूप जीव के परिणाम कौन से हैं ? तप सहित भाव संवर वाले परिणाम ही निर्जरा रूप हैं। ३३. तप किसको कहते हैं ? इच्छा का निरोध करना तप है; अथवा अत्यन्त प्रतिकूल व विषम स्थितियों में, उपसर्गों तथा परीषहों में सम रहना ही आत्मा का प्रताप होने से तप है । ३४. तप कितने प्रकार का होता है ? दो प्रकार का-बाह्य तप और अभ्यन्तर तप । ३५. बाह्य तप किसको कहते हैं और कितने प्रकार का है ? जिसका सम्बन्ध शरीर से हो उसे बाह्य तप या द्रव्य तप कहते हैं । वह छः प्रकार का होता है-अनशन, ऊनोदर, वृत्ति परिसंख्यान, रस परित्याग, विविक्त शय्यासन और कायक्लेश । ३६. अभ्यन्तर तप किसको कहते हैं और कितने प्रकार का है ? जिमका सम्बन्ध आत्मा के चेतन परिणामों या भावों से हो उसे अभ्यन्तर तप या भाव तप कहते हैं। वह छ: प्रकार का है- प्रायश्चित, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, व्युत्सर्ग (कायोत्सर्ग), ध्यान । ३७ द्रव्य निर्जरा किसको कहते हैं ? भाव निर्जरा रूप तप के निमित्त से द्रव्य कर्मों का आत्म प्रदेशों से झगड़ा द्रव्य निर्जरा है। ३८. द्रव्य निर्जरा कितने प्रकार की होती है ? दो प्रकार की -- सविपाक व अविपाक । ३९. सविपाक अविपाक निर्जरा किसे कहते हैं ? अपने अपने समय पर क्रम पूर्वक कर्मों में उदय आआ कर झड़ना सविपाक निर्जरा है; और तप द्वारा कर्मों को काल से पहले ही पकाकर उदीरणा से झाड़ देना अविपाक निर्जरा है। ४०. सविपाक अविपाक निर्जरा में कौन प्रयोजनीय है ? संवर युक्त तथा साक्षात मोक्ष का कारण होने से अविपाक
SR No.010310
Book TitleJain Siddhanta Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaushal
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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